Thursday 7 July 2022

क्या कहते हैं आपके सपने?





विभिन्न स्वप्न फल

1-शुभ स्वप्न एक दृष्टि मेंः

ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित कंस वध के बाद विरहाकुल यशोदा से मिलने दुखी नन्द मथुरा गए तब भगवान श्री कृष्ण ने तत्वज्ञान समझा कर सांत्वना दी। तब नन्द ने लोक कल्याण की भावना से कई प्रश्न श्री कृष्ण से पूछे। उन्होंने श्रीकृष्ण से पूछा - हे प्रभो किस स्वप्न के कारण सुख प्राप्ति के संकेत प्राप्त होते हैं और कौन-कौन से स्वप्न शुभ रहते हैं? श्री कृष्ण द्वारा नन्द को बताए शुभ स्वप्न इस प्रकार हैं -

* धनदायक स्वप्न -

स्वप्न में गाय, हाथी, घोड़ा, महल, पर्वत, पेड़ पर चढ़ना, भोजन करना, रोना, शस्त्र से जख्मी हो जाएँ, जख्म में कींडे़ पड़े, शरीर में रक्त एवं विष्ठा लगी हो इत्यादि।

* धन प्राप्ति के स्वप्न -

पेशाब से गीला होना, वीर्यपान करना, नर्क जाना, लाल नगरी जाना, लाल समुद्र में प्रवेश करना, अमृतपान करना, हाथी, राजा, सोना, बैल, गायक, दीपक, अन्न, फल, फूल, कन्या, सूत्र, ध्वज, रथ, पानी के महाकुम्भ, पान, सफेद धान, नट, नर्तकी, पादुका देखना, धनुष खींचना, घास का मैदान देखना, दीवार में कील ठोकना, धारदार शस्त्र प्राप्त हो, फूलों से लदा वृक्ष, सर्प , मांस, मछली, मोती, शंख, चन्दन, हीरा, आम, मद्य, आँवला, कमल, घर में वेश्या का प्रवेश होना, ब्राह्मण दम्पति, अनाज, मोतियों का हार, पुष्पांजली, गोरोचन, पताका, हल्दी, गन्ना मिलना, सरोवर, नदी, सफेद सांप, सफेद पर्वत, अग्नि उठाना।

* विश्वविख्यात कवि, विद्वान बनने का स्वप्न-

स्वप्न में ब्राह्मण- ब्राह्मणी द्वारा महामंत्र दिया जाना, ब्राह्मण द्वारा पढ़ाया जाना, पुस्तक भेंट होना, अलँकारों से सजी कन्या द्वारा ग्रंथ भेंट होना, माँ की तरह पढ़ाया जाना, चश्मा लगाना, सुगन्ध लगाना।




* राजा समान ऊँचा पद पाना -

ब्राह्मण दम्पति द्वारा मस्तक पर छत्र पकड़ना, सफेद अनाज बिखेरना, अमृत, दही, अच्छा पात्र देना, सफेद फूलमाला पहनकर रथ में बैठकर दही या खीर खाए, हाथी अपनी सूंड से उठाकर अपने मस्तक पर बिठाए, ब्राह्मण जिसे अपनी कन्या दे, स्वप्न में दिव्यनारी आकर कहे 'आप मेरे स्वामी हैं ' और स्वप्न दृष्ट एक दम उठ जाए। गाय का दूध, घी, कमल के पत्ते पर खीर, दही, दूध, घी, शहद एवं मिष्ठान खाए, तैरना, सिंह एवं बड़े जबड़े वाले पशु, सुअर, एवं बन्दरों के कारण पीड़ा, सीढ़ी देखना, टोपी देखना, मकान बनाना, मुरदे से बात करना, बाजार देखना, बड़ी दीवार देखना, धूप देखना।

नोट - स्वप्न में भस्म, कपास, हड्डियाँ इनको छोड़ कर अन्य सभी सफेद वस्तु दिखना शुभ होता है। हाथी घोड़ा ब्राह्मण को छोड़कर अन्य सभी काली वस्तुओं को देखना अशुभ है।

मरा हुआ दीखे =चिरंजीव होवें,

सुखी देखना=दुखी होने का संकेत है।

रोगी हुआ देखना=निरोगता प्राप्त हो

रवि चन्द्र के दर्शन होना।

* धन, विजय, प्रतिष्ठा, सुख, सम्पत्ति, पुत्र प्राप्ति -

      भरा हुआ कलश मिले, सन्तुष्ट ब्राह्मण अपने हृदय से लगाए, हाथ में फूल दे, काली माता के दर्शन, स्फटिक माला तथा इन्द्रधनुष प्राप्त हो, ब्राह्मण आशीर्वाद दे, सन्तुष्ट ब्राह्मण घर पर पधारे, ब्राह्मण दम्पती हँसते हुए फल प्रदान करें, आभूषणों से विभूषित दिव्य ब्राह्मण स्त्री मुस्कराते हुए मकान में प्रवेश करें, पैरों में बेड़ी पड़े, जल, बिच्छु या साँप देखे, सफेद वस्तुओं से अलंकृत स्त्री पुरुष को आलिंगन दें। खेती देखना, नारी देखना, खाई देखना, सफेद फूल देखना, तलवार देखना।

* पत्नी लाभ के स्वप्न -

          घोड़ी, मुर्गा, क्रौंच, पत्ती देखना, अचानक गाय मिलना।

नोट - स्वप्न में जिस घर में सपत्नी ब्राह्मण पधारेगा उस मकान में पार्वती के साथ शिव शंकर एवं लक्ष्मी के साथ नारायण का शुभागमन होता है।





* धन प्राप्ति के अन्य स्वप्न -

      दाँए हाथ का स्पर्श हो, लिंग छेद दर्शन, जी मिचलाना, सूर्य या चन्द्र को गटक जाना, नर मांस भक्षण करना, ऊँचे स्थान पर चढ़कर मिठाई खाए, गहरे पानी में गिरे पड़े, विष्ठा या वमन से बाहर पड़ी चीज खाए, रक्त या मूत्र पीए, शरसंधान करना, धान्य राशि, फल युक्त पेड़ पर चढ़ना, पर्वत शिखर पर चढ़ना, गाय का दुहना, हीरे-मोती, धान्य, चावल की बालियाँ, मूँग के दाने, शस्त्र देखना, झाग के साथ दूध पीना, अगूँठी पहनना, ऊँट देखना, सर के बाल कटे देखना, बालू देखना।

नोट - स्वप्न में सभी सफेद वस्तु देखना शुभ है केवल पकाए हुए चावल खाना अशुभ है। सफेद घोड़ा, सफेद हाथी, पँछी पर सवार होना द्रव्य हानि का संकेत हैं।

* जमीन जायदाद, बड़ा पद, सुख वैभव, भाग्योदय -

       पूर्ण जलाशय के दर्शन, परमात्मा को फल खाते देखना, चतुर्भुज भगवान, लक्ष्मी, सरस्वती, काली माता या शंकर जी के दर्शन, शहर का घेरा डालना, बैल, मनुष्य, पक्षी, हाथी, पर्वत पर चढ़कर पेयपान करना। रोटी खाना, लाल फल देखना, बादल आकाश में देखना।

* अन्य शुभ स्वप्न-

       स्वप्न में मस्तक काटा जाना या कटने का दृश्य देखना, शत्रु पर विजय प्राप्त करना, चाँदी सोने के बर्तन में खीर खाना, सिर पर फल गिरना, मच्छर-खटमल- मक्खी का काटना, रंगीन वस्त्र पहने स्त्री को आलिंगन देना, रोना, पछतावा करना, रत्न जटित पलँग पर सोना या आसनस्थ होना, वीणावादन या गायन करना, गीले कपड़े पहनना, अग्नि दाह के कारण परेशान, बारिश या अग्निकाण्ड की सूचना मिलना, पशु पक्षियों के कारण निद्रा भंग होना, जलता मकान देखना, पितरों के दर्शन होना, जल क्रीड़ा या स्नान करना, माता-पिता के दर्शन होना, तत्काल नींद आना या खुलना, शिवालय, इन्द्र धनुष, मुकुट, किले का तट, बन्दरगाह, छत्रचामर का दर्शन होना, उल्कापात, नक्षत्र, बिजली, मेघ का स्पर्श, नदी, समुद्र पार करना, फूल खाना या देखना, मिट्टी के बर्तन देखना, कस्तूरी, कपूर, चन्दन देखना, या उनका उपयोग करना, सजी स्त्रियाँ व मित्र बन्धुजन के दर्शन, नीलकण्ठ, सारस दीखना, हाथ में पताका, लता, बेली, हरे वृक्ष की टहनी पकड़ना, धूम्रपान करना, धूम्र रहित, ज्वाला रहित अग्नि का भक्षण करना, पानी सहित मछली हाथ में लेना, शंख के दर्शन, सेना या मृत्यु को निकट आते देखना, कर्णाभूषण, मोती, कौड़ी, बैल प्राप्त होना, बाजूबन्द, हार, मुकुट, पुल बान्धना, मिट्टी खाना, सौभाग्यद्रव्य -हल्दी-कुमकुम देखना या प्राप्त करना, नदी का भँवर, दुर्गा के दर्शन, तलवार, धनुष, छुरा, चक्र, गदा आदि देखना, वेदघोष, हाथी का चीखना, घोड़े का हिनहिनाना, नागकेसर, मालती, चमेली, तिल, लवण, लवंग, केला, अनार, नींबू, नारियल, सुपारी, चम्पा, इलायची, रेत, पान, गन्ना, शीशा, पीतल आदि देखना, फल फूल युक्त आम, नीम, मदार आदि काटना, सफेद सांप का काटना, नीम देना या उस पर चढ़ना, साँड, मोर, तोता, हंस, चील देखना, सिर का छेदन, अपना मरण देखना, प्रकाश देखना, कुत्ता देखना, कमल देखना, लोहा देखना, दातुन करना, धरती पर बिस्तर लगाना, नदी का पानी पीना, पत्थर देखना, जंगल देखना, दिया जलते देखना, पत्र पढ़ना, अनार पाना, आकाश देखना, कुएं में पानी देखना, पूरे नगर में वर्षा देखना, ज्योतिषी, सुहागिन स्त्री, गुरु, पुष्प लिए व्यक्ति, विवाह, स्त्री से प्रेम व्यक्त करना, धन प्राप्ति, समुद्र स्नान, तैरना, बालक, बालिकाएँ, दुष्ट को दण्ड देना, शत्रुदमन, परी, अप्सरा, गन्धर्व, संगति, मंडली, शर्बत पीना, तोरण, तीर्थ यात्रा, गंगा स्नान, बन्धन मुक्ति, शरीर का बढ़ना, देवार्चन व्रत, पहाड़ उड़ते देखना, कुटुम्बी की मृत्यु, विशाल भीड़, किला, विजय, ग्रन्थ रचना आदि। 




*अग्नि पुराण के अनुसार कुछ अन्य शुभ स्वप्न -

       अपनी नाभि में तृण या पेड़ उगाना, अपनी भुजा या मस्तक का दर्शन होना, सिर के बाल सफेद होना, चन्द्र, रवि तथा तारे पकड़ना, इन्द्र की ध्वजा को आलिंगन देना, पृथ्वी पर पड़ी जल धारा को अपने शरीर पर लेना, शत्रु की परेशानियाँ देखना, रक्त से नहाना, अपने मुँह से गाय-भैंस, सिंहनी, हथिनी या घोड़ी को दुहना, गाय के सींग से या चन्द्र से बरसी जलधारा से स्वयं को अभिषेक होना, महँगी मोटर या जहाज में बैठना, अपरिचित स्त्री से संभोग करते हुए देखना आदि।

अशुभ स्वप्न एक दृष्टि मेंः

*संकट सूचक स्वप्न -

       जोर से हँसना, खुद का विवाह, नाच गाना देखना, कान में उगे अशोक कदली के फूल देखना, तेल या नमक दिखाई दें, नग्न, नाक कटी हुई काली, शूद्र, विधवा, जटा, ताड़ी के फल देखना, चिढा हुआ ब्राह्मण या चिढी हुई ब्राह्मणी देखना, जंगली फूल, लाल फल, कपास, टांक, सफेद फूल देखना, हिरण का मरा हुआ बच्चा, मनुष्य का मस्तक, रूँडमाला दीखे, अपने टूटे हुए नाखून, बुझी आग, पूर्ण रूप से जली हुई चिता, शमशान, सूखी घास, लोहा, काली स्याही एवं काले घोड़े, टूटे-फूटे बरतन, जख्म, कुष्ठ-रोगी, लाल वस्त्र, जटाधारी, सूअर, भैंसा, काला अंधेरा, मरा हुआ प्राणी, योनी दर्शन, ब्राह्मण-ब्राह्मणी, छोटा बालक, कन्या, क्रोध में विलाप करना, लाल वस्त्र, वाद्य, नाचना, गाना, गायक, मृदंग बजाने वाला दीखें, सींग वाले प्राणी पर बच्चे या बड़े टूट पड़े, कटा हुआ नीचे गिरता हुआ पेड़, छुरी, धदकते अँगारे, पत्थरों की बारिश, रथ, मकान, पर्वत, पेड़, गाय, हाथी, घोड़ा, आकाश से पृथ्वी पर गिरते दीखे, ऊपर से गिर रहे ग्रह, पर्वत, धूमकेतु, टूटा हुआ मनुष्य दिखे, भयभीत गाय अपने बछड़े के साथ भाग जाए (धन नाश), मस्तक पर आच्छादित छत्र कोई छीने तो (पिता, गुरू का नाश), दाँत टूटते देखना, दरवाजा बन्द देखना, दलदल देखना, धुँआ देखना, रस्सी देखना, भूकम्प देखना, कैंची देखना, कोयला देखना, कीचड़ में फँसना, लोमड़ी देखना, मुर्दे को पुकारना, बाजार देखना, बिल्ली देखना, बिल्ली या बन्दर काटे, पत्थर देखना, चादर देखना, रत्न या नगीना देखना, आग जला कर पकड़ना, आँधी और बिजली गिरना, सूखा अन्न खाना, वर्षा अपने घर पर देखना, सूख बाग देखना।

*रोग ग्रस्त सूचक स्वप्न -

         दाँतों का गिरना, हविष्य के पदार्थ दूध, दही, छाछ एवं गुड़ शरीर को लगा दीखे, लाल फूलों की माला पहनी हुई, लाल रंग के वस्त्र पहने हुए स्त्री आलिंगन दे, पादुका, कपाल की हड्डी, लाल फूलों की माला, उड़द, मसूर, मूँग दिखे (फोड़े, जख्म), सेना, गिरगिट, कौआ, सियार, बन्दर, बिगड़ा हुआ भालू, सुअर, भैंसा, ऊँट, गधा हमला करें।

* मृत्यु के संकेतक स्वप्न -

         मुर्दा देखे, जख्मी, बिना सिर का धड़, मुँडन किए प्राणी नाचते देखना, मरा हुआ मनुष्य या काले रंग की मलेच्छ स्त्री आलिंगन दे, शत्रु, कौआ, मुर्गा, भालू आक्रमण करें, अभ्यंग स्नान करके गधा-ऊँट- भैंसा किसी पर सवार होकर दक्षिण में प्रस्थान करें, हँसने वाली, गाने वाली, काले वस्त्र परिधार किए काले रंग की विधवा दिखे, काले वस्त्र पहने काले रंग के फूलों की माला गले में डाले स्त्री आलिंगन दे, गधा या ऊँट के रथ में बैठे नींद खुल जाए, गन्दे कपड़े पहने, पाश एवं अस्त्र धारण किया हुआ यमदूत, काले फूल, काले फूलों की मालाएँ, शस्त्र धारी सेना, विकृतकायाधारी म्लेच्छ स्त्री आदि।




* अन्य अशुभ स्वप्न -

      अत्यन्त वृद्ध काले शरीर वाली नंगी स्त्री का नाचना, खुले केश वाली विधवा, सिर पर ताड़ के या कोई भी काले रंग के फलों का गिरना, मैला कुचैला, विकृत आकार, रुखे केश वाले मलेच्छ या गलित कुष्ठ से युक्त नंगा शूद्र देखना, सधवा, पुत्रवती, सती स्त्री या शिखा खोले ब्राह्मण को, रोष कुपित गुरु, सन्यासी या वैष्णव को देखना, घड़े का फोडा़ जाना, अँगार, भस्म या रक्त की वर्षा, सूर्य या चन्द्र को निस्तेज या ग्रहण लगा हुआ देखना, हाथ से दर्पण, दण्डादि गिरकर टूटना, गले का हार, माला आदि टूटना, काली प्रतिमा देखना, भस्मपुँज, हड्डियों का ढेर, ताड़ का फल, केश, नाखून, कौडि़याँ, कोयला देखना मरघट या चिता पर रखा मुर्दा, कुम्हार का चाक, तेली का कोल्हू, आधे जले या सूखे काठ, कुश, तृण, चलता हुआ घोड़ा, मुर्दे का चिल्लाता हुआ मस्तक, आग से जला हुआ स्थान देखना, भस्मयुक्त सूखा तालाब, जली मछली, लोहा, जला हुआ वन देखना, तिरस्कृत या अपमानित होना, फाँसी लगना, घबराना, पसीने-पसीने होना, घी लेना, मीठी चीज खाना, दुर्घटना होना, खाली बर्तन लेकर भटकना, लाल या काले वस्त्र पहनना, परदेशी की मृत्यु की सूचना, सांपों से क्रीड़ा, सांप का पेट में घुसना, हवा में उड़ना, दक्षिण की यात्रा, चोरी करना, चोरी होना आदि। 

अशुभ फल सूचक स्वप्नों की शान्ति के उपाय -

*अशुभ स्वप्न देखने पर स्वप्न को तुरंत ही यह स्वप्न किसी को सुना दें और पुनः सो जाएँ। स्वप्न के अशुभ फल प्राप्त नहीं होंगे।

*1000 गायत्री मंत्रों से हवन करें।

* ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’, मंत्र का 10,000 जप करें।

*‘ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं दुर्गतिनाशिन्यै महामायायै स्वाहा’ का 10 बार जप करें।      

* महामृत्युञ्जय मंत्र का जप करें।

* ऋग्वेदोक्त ‘दुःस्वप्ननाशन सूक्त’ का पाठ 11 बार करें।

स्वप्न एक गूढ विद्या - स्वप्न की महत्ता तथा आध्यात्मिकता को स्वीकार करते हुए भारतीय तंत्रशास्त्र में भी इस विषय पर विशेष चर्चा की गई है। भारतीय ऋषियों ने कई मंत्रों का उल्लेख किया है, जिसके द्वारा मंत्र की अधिष्ठात्री शक्ति की कृपा से व्यक्ति अपना शुभाशुभ फल जान सकता है। इन साधनाओं में स्वप्नेश्वरी देवी, स्वप्नदेवी, स्वप्नचक्रेश्वरी तथा स्वप्न सिद्धि प्रमुख हैं।

* स्वप्न सिद्धि मंत्र - ‘ॐ ह्रीं नमो वाराहि अघोरे स्वप्नं दर्शय ठःठः स्वाहा’

  इस मंत्र को सोते समय ग्यारह सौ मंत्र का जप करने से ग्यारह दिन के भीतर ही प्रश्न का उत्तर स्वप्न में निश्चित रूप से मिल जाता है।

*स्वप्नदेवी मंत्र - ‘ॐ ह्रीं मानसे स्वप्नेश्वरि विचाय विद्ये वद वद स्वाहा’ 

एक लाख जप करने से प्रश्न का उत्तर स्वप्न में मिल जाता है।

*दुर्गासप्तशती प्रयोग -

" दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।

मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।।"

      इस मंत्र का सोते समय 108 बार नित्य पाठ करने से शीघ्र ही प्रश्न का उत्तर स्वप्न के माध्यम से प्राप्त हो जाता है।

   

Friday 24 June 2022

श्रीसूक्तम् (ऋग्वेदोक्त)



इष्ट-प्राप्ति और अनिष्टों के परिहार हेतु अलौकिक उपायों का विधान करना वैदिक संहिताओं का वैशिष्ट्य है। अनेक सहस्राब्दियों से लेकर अद्यावधिपर्यन्त विविध आर्थिक, पारिवारिक व मानसिक समस्याओं के निराकरण के साथ-साथ समस्त लौकिक आवश्यकताओं की पूर्त्ति हेतु "श्री सूक्त" का पाठ अनवरत व्यवहार में है।
कुछ पाठ-भेद के साथ "श्री सूक्त " के संस्करण उपलब्ध होते हैं। व्यवहार में यह देखा गया है कि उपरोक्त सूक्त का पाठ व श्रवण सर्वथा कल्याणकारी प्रभाव उत्पन्न करता है।

 
                 " श्री सूक्तम् "

ॐ ॥ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥ १॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥ २॥

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् ।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मादेवीर्जुषताम् ॥ ३॥

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥ ४॥

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥ ५॥

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥ ६॥

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥ ७॥

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥ ८॥

गंधद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीꣳ सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥ ९॥

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥ १०॥

कर्दमेन प्रजाभूता मयि सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥ ११॥

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥ १२॥

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥ १३॥

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥ १४॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान्विन्देयं पुरुषानहम् ॥ १५॥

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्य मन्वहम् ।
श्रियः पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥ १६॥

पद्मानने पद्म ऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे ।
त्वं मां भजस्व पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥

अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने ।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ॥

पुत्रपौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवे रथम् ।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु माम् ॥

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः ।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमश्नु ते ॥

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा ।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ॥

न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः ॥

भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्सदा ॥

वर्षन्तु ते विभावरि दिवो अभ्रस्य विद्युतः ।
रोहन्तु सर्वबीजान्यव ब्रह्म द्विषो जहि ॥

पद्मप्रिये पद्मिनि पद्महस्ते पद्मालये पद्मदलायताक्षि ।
विश्वप्रिये विष्णु मनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व ॥

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी ।
गम्भीरा वर्तनाभिः स्तनभर नमिता शुभ्र वस्त्रोत्तरीया ।
लक्ष्मीर्दिव्यैर्गजेन्द्रैर्मणिगण खचितैस्स्नापिता हेमकुम्भैः ।
नित्यं सा पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता ॥

लक्ष्मीं क्षीरसमुद्र राजतनयां श्रीरंगधामेश्वरीम् ।
दासीभूतसमस्त देव वनितां लोकैक दीपांकुराम् ।
श्रीमन्मन्दकटाक्षलब्ध विभव ब्रह्मेन्द्रगङ्गाधरां ।
त्वां त्रैलोक्य कुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् ॥

सिद्धलक्ष्मीर्मोक्षलक्ष्मीर्जयलक्ष्मीस्सरस्वती ।
श्रीलक्ष्मीर्वरलक्ष्मीश्च प्रसन्ना मम सर्वदा ॥

वरांकुशौ पाशमभीतिमुद्रां करैर्वहन्तीं कमलासनस्थाम् ।
बालार्क कोटि प्रतिभां त्रिणेत्रां भजेहमाद्यां जगदीश्वरीं ताम् ॥

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरिप्रसीद मह्यम् ॥

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् ।
विष्णोः प्रियसखींम् देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥

महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमही ।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥

आनन्दः कर्दमः श्रीदश्चिक्लीत इति विश्रुताः ।
ऋषयः श्रियः पुत्राश्च श्रीर्देवीर्देवता मता: ॥ 

चन्द्रभां लक्ष्मीमीशानाम् सुर्यभां श्रियमीश्वरीम् ।
चन्द्र सूर्यग्नि सर्वाभाम् श्रीमहालक्ष्मीमुपास्महे ॥

श्रीवर्चस्यमायुष्यमारोग्यमाविधात् पवमानं महीयते ।
धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥

ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः ।
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥

श्रिये जात श्रिय आनिर्याय श्रियं वयो जनितृभ्यो दधातु ।
श्रियं वसाना अमृतत्वमायन् भजंति सद्यः सविता विदध्यून् ॥

श्रिय एवैनं तच्छ्रियामादधाति । सन्ततमृचा वषट्कृत्यं
सन्धत्तं सन्धीयते प्रजया पशुभिः ।
य एवं वेद ।

ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि ।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥

॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥