Wednesday 17 October 2018

शेयर मार्केटिंग और अंकशास्त्र


       भारतीय फलित ज्योतिषशास्त्र के समान ही अंक ज्योतिष भी अपने चमत्कारिक प्रभाव के कारण जनसामान्य में काफी लोकप्रिय है। अंक ज्योतिष के इन्हीं प्रभावों का आश्रय लेकर अनेक लोग सुख-समृद्धि तथा सफलता की ऊँचाईयों को पा चुके हैं। अंक ज्योतिष के सिद्धांतों के आधार पर जातक अपने नाम,प्रतिष्ठान के नाम तथा विविध क्रियाकलापों का नामकरण कर सामान्य से बहुत अधिक सफलता प्राप्त करते हैं। कम समय में विपुल धनागम हेतु मानव कई अलग मार्गों को अपनाता है । कई बार उसे असफलता हाथ लगती है तो कभी कभी वह सफल भी हो जाता है। 

शेयर मार्केट से धनप्राप्ति
ज्योतिषशास्त्रीय दृष्टि
    
  Citibank [CPA] IN  

त्वरित धनप्राप्ति, कर संरक्षण तथा सुरक्षा मानकों के आधार पर शेयर मार्केटिंग आज जन सामान्य को भी अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।इसी आकर्षण के मोह में जातक किसी विशेष तैयारी तथा ग्रहों की अनुकूलता तथा प्रतिकूलता पर विचार किये बिना शेयर मार्केटिंग के क्षेत्र में अपना भाग्य आजमाता है और बहुधा असफलता को प्राप्त करता है और अपना सब कुछ गँवाने के बाद निराश और हताश होकर अपने भाग्य को कोसता रहता है।और कई बार तो निराशा और हताशा में आकर अपना सब कुछ खोने के के बाद आत्मघात भी कर लेता है । इन समस्याओं और अनिष्टों से बचने के लिए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र की तरह शेयर मार्केटिंग में भी अंक ज्योतिष का प्रयोग करने से जबरदस्त सफलता पाई जा सकती है।
         अंकशास्त्र में मूलांक,भाग्यांक और नामांक का विशेष महत्व होता है । व्यक्ति अपने मूलांक, भाग्यांक तथा नामांक के आधार पर शेयर मार्केट से अनुकूल कंपनियों का चयन कर, अभूतपूर्व सफलता पा सकता है। शेयर मार्केटिग के क्षेत्र में अंक ज्योतिष के प्रयोग-विधि को जानने से पूर्व हमें मूलांक,भाग्यांक और नामांक स्पष्ट करना आना चाहिए और निम्नलिखित तथ्यों को भली-भांति  समझ लेना अत्यन्त अनिवार्य है।

कैसे निकालें मूलांक भाग्यांक और नामांक  ??

मूलांक 
       मूलांक स्पष्ट करना अत्यन्त सरल है । व्यक्ति जिस दिन जन्म लेता है उसी दिन की तारीख से मूलांक ज्ञात करते हैं। जातक की जन्मतिथि अगर 1 से 9 तारीख के बीच की है तो उसका मूलांक उसकी जन्मतिथि ही होतो है । उदहारण के लिए यदि किसी व्यक्ति की जन्मतिथि 06-01-1960 हो तो उस जातक का मूलांक 6 होगा । यदि जन्मतिथि दो अंकों की जैसे 23, 27, 19 आदि हो तो मूलांक निकलने की विधि किन्चित भिन्न है । इस परिस्थिति में मूलांक निकालने के लिए जन्मतिथि में आने वाले दोनों संख्यों को जोड़ने से मूलांक प्राप्त होता है। जैसे यदि जातक की जन्मतिथि 22-11-1980 हो तो जन्मतिथि 22 में आनेवाली दोनों संख्याओं 2 और 2 को जोड़ा जाना चाहिए । अर्थात्  2 + 2 = 4  अर्थात् वर्ष के किसी भी महीने की 22 तारीख को जन्म लेने वाले व्यक्ति का मूलांक 4 होगा । परन्तु एक अन्य स्थिति में मूलांक निकालने की इस विधि में कुछ अतिरिक्त संक्रियाएं भी करनी होती हैं । उदाहरणस्वरूप यदि किसी जातक का जन्म 28-03-1987 को हुआ हो तो उपरोक्त विधि से इस जातक का मूलांक स्पष्ट करने पर हमें 2 + 8 = 10 प्राप्त होता है तो हमें प्रथमदृष्टया ऐसा प्रतीत होता है की इस जातक का मूलांक 10 है । परन्तु ऐसा नहीं है उचित मूलांक प्राप्ति हेतु हमें पुनः 10 में उपलब्ध दोनों अंकों अर्थात् 1 और 0 को जोड़ना होगा इस प्रकार 1 + 0 = 1 इस जातक का सही मूलांक होगा । ठीक इसी तरह 19 तारीख को जन्म लेने वाले व्यक्ति का मूलांक 1 + 9 = 10  = 1 + 0  = 1  होगा। यह विधि किसी भी महीने के केवल 19, 28 और 29 तारीखों को जन्म लिए जातकों के लिए ही उपयोगी है।


भाग्यांक
      अंकशास्त्र के अनुसार किसी भी जातक के भाग्यांक को स्पष्ट करने के लिए जिस विधि का विधान किया गया है उसके अनुसार व्यक्ति की जन्मतिथि के दिन, मास और वर्ष की सभी संख्याओं को आपस में जोड़ने से भाग्यांक प्राप्त होता है। उदहारणस्वरुप यदि किसी व्यक्ति की जन्मतिथि  17-10-1983 हो तो, इस व्यक्ति का भाग्यांक 1+7+1+0+1+9+8+3=30 , 3+0=3 होगा।

नामांक   
    नामांक की गणना करना किंचित कठिन है परन्तु थोड़े ही प्रयास से इसे सहज ही सीखा जा सकता है । नामांक स्पष्ट करने की मुख्यतया तीन विधियाँ प्रचलित हैं जिनके आधार पर जातक का नामांक स्पष्ट किया जा सकता है और ये विधियाँ हैं-
          अ)कीरो पद्धति
    ब) पाईथोगोरस पद्धति
    स) सेफेरियल पद्धति

अब इन तीनों पद्धतियों के सिद्धान्तों पर क्रमशः दृष्टिपात करते हैं।

     अ ) कीरो पद्धति के अनुसार अंग्रेजी वर्णमाला के वर्णों के लिए अलग अलग अंक निश्चित किये गए है –

 A(1),B(2),C(3),D(4),E(5),F(8),G(3),H(5),I(1),J(1),K(2),L(3),M(4),N(5),O(7),P(8),Q(1),R(2),S(3),T(4),U(6),V(6),W(6),X(5),Y(1),Z(7)  

ब) पाईथोगोरस पद्धति के अनुसार अंग्रेजी वर्णमाला के वर्णों के लिए निश्चित अंक कीरो पद्धति से भिन्न हैं और इस मत के अनुसार अंग्रेजी वर्णमाला के वर्णों के लिए निर्धारित अंकों का क्रम इस तरह है-

A(1),B(2),C(3),D(4),E(5),F(6),G(7),H(8),I(9),J(6),K(2),L(1),M(3),N(4),O(5),P(6),Q(7),R(8),S(9),T(1),U(2),V(7),W(5),X(3),Y(4),Z(5)

स) सेफेरियल पद्धति उपरोक्त दोनों ही पद्धतियों से नितान्त भिन्न है और यह मत अंग्रेजी वर्णमाला के वर्णों के लिए अंक निर्धारण की जिस पद्धति का विधान करता है उसके अनुसार वर्ण और अंकों का सम्बन्ध इस प्रकार है –

A(1),B(2),C(2),D(4),E(5),F(8),G(3),H(8),I(1),J(1),K(2),L(3),M(4),N(5),O(7),P(8),Q(1),R(2),S(3),T(4),U(6),V(6),W(6),X(6),Y(1),Z(7)



       उपरोक्त तीनों ही पद्धतियों के द्वारा नामांक स्पष्ट किया जा सकता है ,परन्तु ध्यान रहे कि यदि दो नामों का नामांक निकालना अभीष्ट हो तो दो नो के लिए किसी एक ही विधि का आश्रय लेना उचित रहेगा । दोनों नामों के लिए अलग अलग विधियों का आश्रय लेने से फलादेश गलत हो जायेगा इसकी पूरी सभावना है ।
उपरोक्त तालिका में से कीरो पद्धति के आधार पर अजय कुमार (AJAY KUMAR) नाम के इस व्यक्ति का नामांक इस प्रकार निकाला जाएगा -

       AJAY KUMAR ,  A(1) + J(1) + A(1) + Y(1)  + K(2) + U(6) + M(4) + A(1) + R(2) =  19 , पुनः 1+9 = 10 , 1+0 = 1

                 अतः इस जातक का नामांक 1 होगा।


 अंकशास्त्र का कैसे करें प्रयोग शेयर मार्केटिग में

      अब जबकि हम नामांक निकलने की विधि जान चुके हैं तो हमरी जिज्ञासा सहज ही उत्पन्न होती है की इस शास्त्र का प्रयोग शेयर मार्केटिंग में किस प्रकार कर सकते हैं ? जातक तथा सम्बंधित शेयर की कम्पनी का नामांक दो ऐसे महत्वपूर्ण अवयव हैं जिनके आधार पर इस शास्त्र का प्रयोग शेयर मार्केटिंग में कर सकते हैं । इसके लिए व्यक्ति के नामांक निकालने की विधि से ही कंपनी के नाम का नामांक निकाल लेते हैं । माना SAIL नामक कंपनी का नामांक निकालना है तो -
SAIL , S(3) + A (1) + I (1) + L (3) = 8
इस तरह SAIL नामक कम्पनी का नामांक  8 सिद्ध होता है ।
                अब यह देखें कि कंपनी के नामांक का, व्यक्ति के मूलांक, भाग्यांक तथा नामांक से किस प्रकार का संबंध है ? इसे जानने के लिए अंकों की मित्रता तथा शत्रुता संबंधी निम्नलिखित तालिका से सहायता लें -

अंकों की शत्रुता तथा मित्रता संबंधी तालिका
अंक
स्वामी ग्रह
मित्रांक
समांक
शत्रु अंक
1
सूर्य
4,8
2,3,7,9
5,6
2
चन्द्रमा
7,9
1,3,4,6
5,8
3
बृहस्पति
6,9
1,2,5,7
4,8
4
राहु
1,8
2,6,7,9
3,5
5
बुध
3,9
1,6,7,8
1,9
6
शुक्र
3,9
2,4,5,7
1,8
7
केतु
2,6
3,4,5,8
1,9
8
शनि
1,4
2,5,7,9
3,6
9
मंगल
3,6
2,4,5,8
1,7

                       
          

  यदि कंपनी नामांक का व्यक्ति के मूलांक, भाग्यांक तथा नामांक के साथ मित्रता है तो यह लाभप्रद परिस्थितियों का निर्माण करती है। जबकि इन अंकों के मध्य अधिक शत्रुपूर्ण संबंध आर्थिक हानि को दर्शाते हैं। इसी प्रकार यदि इन अंकों के मध्य एक संबंध तो मित्रतापूर्ण हों जबकि अन्य सम्बन्ध शत्रुतापूर्ण हों तो जातक को इस कंपनी के शेयरों से न तो अधिक लाभ होगा और न ही अधिक हानि होगी। अतः किसी भी कंपनी में निवेश करने से पूर्व यह अवश्य देख लें कि कंपनी के नामांक आपके मूलांक,भाग्यांक या नामांक के अनुकूल हैं या नहीं। अधिक अनुकूल संबंधों के उपरांत ही सम्बंधित कम्पनी के शेयर में निवेश से लाभ प्राप्ति संभव है अन्यथा हानि की अधिक सम्भावना होगी। इसके अतिरिक्त अंक शास्त्र में विभिन्न उद्योगों व उनसे सम्बन्धित अन्य क्षेत्रों  पर अलग-अलग अंकों का आधिपत्य स्वीकार किया गया है। निम्नलिखित तालिक द्वारा इसे स्पष्टतया समझ सकते हैं -

विभिन्न क्षेत्र पर अंकों तथा ग्रहों का आधिपत्य
अंक
1
2
3
4
5
6
7
8
9
ग्रह   
सूर्य
चन्द्रमा
बृहस्पति
राहू
बुध
शुक्र
केतु
शनि
मंगल
क्षेत्र
सार्वजनिक क्षेत्र के  उपक्रम
औषधी
बैंकिग
सूचना प्रौद्योगिकी
दूरसंचार
वाहन
तेल
भारी उद्योग
विद्युत्, भवन निर्माण


     
                जातक को अपने मूलांक तथा भाग्यांक से मैत्री रखने वाले औद्योगिक क्षेत्रें में ही निवेश करना चाहिए। जबकि जिन अंकों से शत्रुता हो, उन सेक्टर में निवेश से बचना चाहिए।
                इसी प्रकार यदि किसी कंपनी का IPO आ रहा हो तो उस IPO में निवेश करने से पूर्व अंक मैत्री चक्र के द्वारा कंपनी के नामांक के साथ अपनी अनुकूलता को अवश्य जांच लें। IPO  निकलने की तारीख का भाग्यांक भी निकालें (जातक के भाग्यांक की तरह)। कंपनी के इस भाग्यांक से भी अनुकूलता तथा प्रतिकूलता का ज्ञान कर लें।
                यदि उपरोक्त विधियों का आश्रय लेकर व्यक्ति शेयर में निवेश करता है तो शेयर मार्केटिग के क्षेत्र में सफलता की ऊँचाईयों को सहजतापूर्वक छुआ जा सकता है।




AngelBroking [CPA] IN

Tuesday 16 October 2018

दीपावली : पञ्चपर्वों का महानुष्ठान


      कार्त्तिक मास अपने आध्यात्मिक महत्व के दृष्टिकोण से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना जाता है। कार्त्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से लेकर कार्त्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तक धर्मग्रन्थों में पाँच पर्वों का अनुष्ठान करने का प्रावधान है। सर्वप्रथम कार्त्तिक पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मृत्यु के देवता यमराज के लिए दीप-दान किया जाता है। इसी दिन देवताओं के वैद्य धन्वन्तरि की अराधना करने की भी परम्परा रही है। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी, अमावस्या को दीपावली, कार्त्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को गोवर्धन-पूजा तथा द्वितीया को भैया-दूज का पर्व धूमधाम तथा विधि-विधान पूर्वक सम्पादित करना चाहिए। दीपावली का महापर्व इन समस्त त्योहारों के सामूहिक अनुष्ठान के बाद ही पूर्ण होता है।

कार्त्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को अनुष्ठेय पर्व

मृत्यु के देवता यमराज हेतु दीपदान

      कार्त्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को सर्वप्रथम साधक को ब्रह्ममुहूर्त्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर यमराज हेतु दीपदान का संकल्प करना चाहिए। पूरे दिन व्रतोपवासपूर्वक रहकर सांय काल में सन्ध्योपासना के बाद यमराज हेतु दीपदान करने का प्रावधान है। इसके लिए अपने घर से बाहर मिट्टी अथवा गाय के गोबर से बने दीपक में सरसों तेल डालकर उसे प्रज्जवलित करें। इसके उपरान्त मृत्युदेव यमराज का ध्यान करते हुए निम्नलिखित श्लोक का भक्तिपूर्वक उच्चारण करें -

‘मृत्युना पाश-हस्तेन कालेन भार्यया सह।
त्रयोदश्यां दीप-दानात् सूर्यजः प्रीयताम्।।’

यदि श्लोक उच्चारण में किञ्चित कठिनाई हो रही हो तो मातृभाषा में यमराज से प्रार्थना करें - हे सूर्यपुत्र यमराज मृत्यु, पाशधारी काल और अपनी पत्नी सहित, आज त्रयोदशी तिथि को दिए गए इस ‘दीप-दान से प्रसन्न हों।’ इसके बाद अपने समस्त पाप कर्मों के लिए यमराज से क्षमा-प्रार्थना करनी चाहिए।

धन्वन्तरि की पूजा-विधि 


       देवताओं के वैद्य तथा अमृत प्रदाता भगवान् धन्वन्तरि की अराधना कार्त्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को करना चाहिए। भगवान धन्वन्तरि की पूजा अपने और अपने परिवार के स्वास्थ्य, आरोग्य, आयु तथा सुख-प्राप्ति के लिए करने का विधान है। इस दिन सांय काल में स्नानादि से निवृत्त होकर, सन्ध्योपासना के बाद भगवान् धन्वन्तरि के चित्र को पूजन स्थल पर रखें। इसके बाद निम्नलिखित तीन मन्त्रों से आचमन करेें
* आत्म-तत्त्वं शोधयामि स्वाहा।
* विद्या-तत्त्वं शोधयामि स्वाहा।
* शिव-तत्त्वं शोधयामि स्वाहा।
आचमन के बाद देशकालादि का स्मरण कर भगवान् धन्वन्तरि के पूजा का संकल्प करें। तदुपरान्त पूजन सामग्री तथा स्वयं को पवित्र करने के लिए निम्नलिखित पवित्रीकरण मन्त्र का उच्चारण कर पूजा सामग्री तथा स्वयं पर जल छिड़कें -
 ॐ अपवित्रः पवित्रोऽपि वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।
शुद्धिकरण के बाद घी का दीपक जलाकर भगवान् धन्वन्तरि के समक्ष स्थापित करें। निम्नलिखित मन्त्र द्वारा भगवान् धन्वन्तरि का ध्यान करें -
चतुर्भुजं पीत वस्त्रं सर्वालङ्कार-शोभितम्।
ध्याये धन्वन्तरिं देवं सुरासुर-नमस्कृतम्।।
युवानं पुण्डरीकाक्षं सर्वाभरण-भूषितम्।
दधानममृतस्यैव कमण्डलुं श्रिया-युतम्।।
यज्ञ-भोग-भुजं देवं सुरासुर-नमस्कृतम्।
ध्याये धन्वन्तरिं देवं श्वेताम्बरधरं शुभम्।।

ध्यान के बाद 'आगच्छ देव-देवेश! तेजोराशे जगत्पते। क्रियमाणां मया पूजां गृहाण सुर-सत्तम। श्री धन्वन्तरि देवं आवाहयामि' इस मन्त्र से धन्वन्तरि का आह्नान करें। इसके बाद भगवान् धन्वन्तरि को पुष्प, पुष्पमाला, धूप, गन्ध, नैवेद्य आदि समर्पित करें। पूजा के अन्त में क्षमा-प्रार्थना करें तथा अपने तथा अपने परिवार के आरोग्य, सुखादि की याचना करें।

कार्त्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनुष्ठेय पर्व 

    इस दिन नरक चतुर्दशी मनाने का विधान है। प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त में उठकर स्नान के समय अपने सिर के चारों ओर चकबक तथा अपामार्ग (चिरचिरी) को घुमायें तथा निम्नलिखित श्लोक का उच्चारण करें -
सीता-लोष्ट-सहा-युक्तः सकण्टक-दलान्वितः।
हर पापमपामार्ग! भ्राम्यमाणः पुनः पुनः।।
    स्नान के बाद सूर्यपुत्र भगवान् यम के चौदह नामों के तीन-बार उच्चारण करने का विधान है। यम के चौदह नाम निम्नलिखित हैं -ॐ यमाय नमः,
ॐ धर्मराजाय नमः, ॐ मृत्यवे नमः, ॐ अन्तकाय नमः, ॐ वैवस्वताय नमः,  ॐ सर्वभूतभक्षाय नमः, ॐ औदुम्बराय नमः, ॐ दहनाय नमः,ॐ नीलाय नमः, ॐ परमेष्टिने नमः, ॐ वृकोदराय नमः,ॐ चित्रये नमः, ॐ चित्रगुप्ताय नमः। इन मन्त्रों का उच्चारण प्रातः काल में करें। पुनः सायं काल घर से बाहर नरक निवृत्ति हेतु चौमुखी दीपक में सरसों का तेल डालकर उसे जलाएं। पुनः तुलसी, रसोई घर, स्नानागार तथा अन्य कक्षों में भी दीपक जलाएँ। इस प्रकार दीप-दान से यमराज प्रसन्न होते हैं।


कार्त्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को अनुष्ठेय पर्व 


    इस तिथि को दीपावली का पर्व मनाया जाता है। इस दिन प्रातः काल उठकर सारे घर को जल द्वारा धोकर स्वच्छ करें। पुनः सर्वत्र गंगाजल के छींटे दें। आम्र पल्लवों से बन्दनवार बनाकर बाँधे। इसके बाद सांय काल में स्थिर लग्न में भगवती लक्ष्मी गणेश, विष्णु, काली तथा कुबेर का पूजन किया जाता है। इस अवसर पर विष्णु-पूजन अनिवार्य है। यद्यपि आजकल दीपावली के अवसर पर गणपति तथा महालक्ष्मी का पूजन ही प्रचलित है, तथापि गृह में महालक्ष्मी के स्थिर निवास हेतु विष्णु पूजन अनिवार्य है। माता महालक्ष्मी स्वभाव से ही चञ्चला हैं। पुत्र गणेश के साथ पूजन से वे कुछ काल के लिए ही आ सकती हैं।  परन्तु माता महालक्ष्मी का उनके पति विष्णु के साथ पूजन करने से वे गृह में स्थिर निवास करती हैं। सर्वप्रथम पवित्रीकरण मन्त्र से स्वयं तथा पूजन-सामग्री को शुद्ध करें। आचमन के बाद भगवती महालक्ष्मी, विष्णु, गणेश, महाकाली, नवग्रह, कुबेरादि देवताओं के पूजन का संकल्प लें। समस्त देवताओं के षोडशोपचार पूजन का विधान है। षोडशोपचार में ध्यान, आवाहन, पुष्पाञ्जलि, स्वागत, पाद्य, अर्घ्य, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, ताम्बूल, दक्षिणा, प्रदक्षिणा तथा पुष्पाञ्जलि सहित प्रणाम ये समस्त विधियाँ सम्मलित हैं। इस अवसर पर महालक्ष्मी तथा गणेश की पारद प्रतिमा स्थापित करें। इसी दिन श्रीयन्त्र की स्थापना अत्यन्त सौभाग्यदायक तथा समृद्धिप्रद मानी जाती है। श्रीयन्त्र यदि स्फटिक अथवा पारद का हो तो अत्यन्त उत्तम है। पूजनोपरान्त महालक्ष्मी गायत्री मन्त्र से 1001 आहुतियाँ से हवन करना चाहिए। हवन के बाद देवगण से क्षमा प्रार्थना कर लेनी चाहिए।

कार्त्तिक शुक्लपक्ष प्रतिपदा को अनुष्ठेय पर्व 

     इस तिथि को गोवर्धन पूजा करने का विधान है। सर्वप्रथम भगवान कृष्ण के आदेश से गोवर्धन पूजा की गई थी। इस पूजन में गौवंश के पूजन का महत्व है। इस दिन गाय, बैल और बछड़ों को सजाना चाहिए। उनके सीगों में सरसों का तेल लगाया जाता है। दूध, गुड़ तथा चावल से बनी खीर से गौमाता को भोग लगाया जाना चाहिए। यदि घर में गाय न हो तो, उत्तम भोजन बनाकर किसी गाय को खिलाना चाहिए। इस दिन गोवर्धन पूजा का भी विधान है। यदि गोवर्धन पर्वत जा सकें तो अति उत्तम, अन्यथा गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बना लेना चाहिए। इस गोवर्धन पर्वत्त की पूजा क्रमशः पाद्य-अर्घ्य-गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-नैवेद्य-आचमन- ताम्बूल तथा दक्षिणादि समर्पित करके सम्पादित की जानी चाहिए।

कार्त्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को अनुष्ठेय पर्व 

    इस दिन भाई-बहनों का त्योहार भाई-दूज मनाया जाता है। इस दिन प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त्त में उठकर प्रातः चन्द्र दर्शन करें। सम्भव हो यमुना नदी में स्नान करें। यदि यमुना स्नान सम्भव न हो पाए तो तेल लगाकर घर में ही स्नान करें। इस दिन भाई को बहन के घर जाकर उसको वस्त्र-धनादि प्रदान करना चाहिए। इस दिन बहन के घर भोजन करने का विशेष महत्व है। यदि अपनी बहन न हो तो मुँह बोली बहन, चाचा या मौसी की लड़की अथवा मित्र की बहन के यहाँ भी जाकर उन्हें ये समस्त वस्तुएँ समर्पित की जा सकती हैं। यह पर्व भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है। बहन भाई को टीका लगाए तथा यमराज से अपने भाई तथा सुहाग की मंगल कामना हेतु प्रार्थना करें। इसी दिन यमुना जी ने अपने भाई यमराज को भोजन करवाया था, तथा नारकीय जीवों को यातना से छुटकारा दिलाया था। इसीलिए यह पर्व ‌‌'यम द्वितीया' नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि जो लोग इस दिन बहनों को वस्त्र दक्षिणादि से सन्तुष्ट करते हैं, उन्हें भगवान् यम की कृपा से कलह, अपकीर्त्ति, शत्रुभय, अपमृत्यु आदि दुःखों का सामना नहीं करना पड़ता तथा वर्ष भर, धन, यश, बल, आयु की वृद्धि होती है। इस दिन पुनः चौमुखी दीपक में सरसों तेल डालकर उसे प्रज्जवलित कर यमराज हेतु घर से बाहर दीप-दान करें।