Monday 1 November 2021

रमल ज्योतिषशास्त्रीय पद्धति

पाशकों के द्वारा फलादेश की विधा ‘रमल’ की एक दीर्घकालीन व  विस्तृत परम्परा उपलब्ध होती है । रमलविद्या में प्रयुक्त पाशक विशिष्ट होते हैं, अष्टधातुओं से निर्मित इन घनाकार पाशकों पर रेखा तथा बिन्दु उत्कीर्ण होते हैं । इन्हीं पाशकों को विशिष्ट काष्ठफलक पर क्षेपित करने से, पाशकों के ऊपरी फलक पर प्राप्त बिन्दु तथा रेखाओं से निर्मित षोडश शकुनपङ्क्तियों के द्वारा जातक के प्रश्नों का उत्तर तथा शुभाशुभ फलकथन किया जाता है ।


भगवान शिव ने मनुष्यों के लिए इस शास्त्र का सर्वप्रथम उपदेश द्वापर युग के अन्त में मादन ऋषि के पुत्र आदम को दिया। इन्हीं ऋषि आदम ने शिव द्वारा प्राप्त रमल विद्या को पारसी भाषा में लिखा- 
“रमलाख्यञ्च तद् ग्रन्थं देशगोषु समानयत्। 
पारसीवचने कृत्वा सर्वं प्रश्नमवीवदत्” 

जातक के प्रश्नों पर आधारित तथा भविष्य फलकथन से सम्बन्धित रमलशास्त्रीय ग्रन्थों की एक समृद्ध परम्परा प्राप्त होती है,जिसमें गर्ग संहिता की पाशिकावलि, रमलामृत, श्रीपति एवं भट्टोत्पल के रमलसारग्रन्थ, रमलचिंतामणि, रमलगुलजार, रमलदानदयाल, रमलप्रश्नोत्तरी, श्री रंगलालकृत रमलनवरत्नम्, परमसुख उपाध्यायकृत रमलनवरत्नम्, रमलरहस्यम्, रमलदिवाकर, रमलशास्त्र, रमलसिकता, रमलसारतन्त्र आदि प्रमुख हैं।

रमल के पाशकों का निर्माण अष्टधातु (सोना, चाँदी, ताँबा, रांगा, जस्ता, शीसा, लोहा तथा पारद) से करने का विधान है।उपरोक्त सप्त धातुओं में से प्रत्येक 3-3 मासा अर्थात् कुल 21 मासा प्रमाण धातु का प्रयोग आठ घनाकार समान टुकड़ों के निर्माण में करना चाहिए।इन घनाकार टुकड़ों में छः फलक होते हैं तथा इनके चार फलकों पर अधोलिखित आकृतियाँ अङ्कित करनी होती हैं। 

यही प्रक्रिया आठों पाशकों के साथ दुहरानी होती है।चार-चार पाशकों को दो अलग-अलग कीलों में पिरो दिया जाता है, जिससे रमल के दो पाशक समूह बन जाते हैं।

पाशक क्षेपण विधान- रमलवेत्ता को प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होने के उपरान्त, शुद्धवस्त्र धारण करना चाहिए तथा वह अपने इष्टदेव व गुरु का स्मरण कर ही पाशक युगल को काष्ठपीठ पर प्रेक्षित करने में प्रवृत्त हो। 
रमलशास्त्र में पाशक-क्षेपण के द्वारा सोलह शकुन पंक्तियों या शकलों का निर्माण होता है । 
सोलह शकलों की संज्ञाएँ क्रमशः लह्यान, कब्जुल दाखिल, कब्जुल खारिज, जमात, फरहा, उकला, अंकीश, हुमरा, वयाज, नुस्रतुल खारिज, नुस्रतुल दाखिल, अतबेखारिज, नकी, अतबेदाखिल, इजतमा तथा तारिखा हैं ।
रमलशास्त्रीय शकल स्वरूप-
पाशक क्षेपण के उपरान्त प्राप्त बिन्दुओं के आधार पर षोडश शकल अधोलिखित स्वरूप में प्राप्त होते हैं-

शकलों का विभाजन- रमलशास्त्रोक्त षोडश शकलों का खारिज, दाखिल, साबित तथा मुन्कलीब इन चार भेदों में विभाजन किया गया है ।
शकलों के आधार पर ही जातक के विविध प्रश्नों का उत्तर दिया जाता है। रमलशास्त्र में शकलों का बलाबल निर्णय अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विषय होता है, क्योंकि शकल अपना शुभाशुभ निर्णय देने में तभी सफल होते हैं जबकि वो सबल हों, अन्यथा शकल अपना शुभाशुभ फल देने में असमर्थ हो जाते हैं।