Friday 14 September 2018

राजनीति में सफलता प्राप्ति के स्वर्णिम ग्रहयोग

           
    

               भारतीय ज्योतिषशास्त्र ने मानव जीवन के प्रत्येक अंग को अपने दिव्य प्रकाश के द्वारा आलोकित किया है। मनुष्य के जीवन में घटने वाली प्रत्येक घटना यथा- स्वास्थ्य, विद्या, विवाह, शारीरिक सुख, रोग, दुर्घटना, यशलाभ, आजीविका आदि समस्त विषय से सम्बन्धित पूर्वानुमान ज्योतिषशास्त्र तथा इसके आनुषांगिक शास्त्रों द्वारा सम्भव है। सत्ता सुख, शक्ति-पिपासा, समाज कल्याण तथा आजीविका इन समस्त दृष्टिकोणों से राजनीति का क्षेत्र शताब्दियों से मनुष्य को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। जहाँ कुछ लोग केवल समाज कल्याण की भावना से राजनीति की ओर आकर्षित होते हैं, वहीं कुछ लोगों को राजनीति के अन्य सुख अपनी ओर खींच लेते हैं जबकि कुछ लोग अपनी वंश परम्परा के कारण इस क्षेत्र में आते हैं। यह सत्य है कि इस क्षेत्र में हजारों लोग कई दशकों से सफलता हेतु संघर्षरत रहते हैं वहीं कुछ लोग शीघ्र ही राजनीति की विभिन्न सीढि़यों से चढ़ते हुए सत्ता सुख को प्राप्त कर लेते हैं। इन परिस्थितियों के सामने आने पर इस क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्ति निराश हो जाते हैं और अपने प्रारब्ध, भाग्य और ईश्वर के ऊपर इस असफलता का दोषारोपण करते हैं। जीवन के अन्य क्षेत्रों की भाँति ही राजनीति का क्षेत्र भी ग्रह, नक्षत्र, राशियों तथा व्यक्ति के प्रारब्ध पर आधारित है और इस विषय पर प्राचीन ज्योतिषशास्त्रीय ग्रन्थों में पर्याप्त चर्चा की गई है। यह सत्य है कि प्राचीन आर्यावर्त के अधिकांश क्षेत्र में राजशाही थी और राजा के चुनाव में जनता का कोई योगदान नहीं होता था। परन्तु राजशाही में भी कुछ ऐसे पद अवश्य थे जिनका निर्वाचन जनता द्वारा होता था। अतः प्राचीन ज्योतिषशास्त्रीय ग्रन्थों में वर्णित ग्रहयोगों के आधार पर ही राजनीति के क्षेत्र में सफलता प्राप्ति के सूत्रों का अन्वेषण करना उचित होगा।
वर्त्तमान प्रशासनिक व्यवस्था और राजनीति - स्वतन्त्रता प्राप्ति के साथ ही भारतवर्ष में लोकतन्त्र की स्थापना हो गई और जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि ही प्रशासन को सम्भालने लगे। स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय से ही निर्वाचन की यह पद्धति चल रही है, पर इतना अवश्य है कि अब राजनीति का उद्देश्य समाज-सेवा मात्र नहीं रह गया है। इस क्षेत्र में कार्य करने वाला व्यक्ति अपने पराक्रम, वाणी, व्यक्तित्व, सामाजिक प्रतिष्ठा व स्वीकार्यता, धनबल, वंशपरम्परा तथा भाग्य की प्रबलता के आधार पर सफलता प्राप्त करता है या उपरोक्त विषयों के अभाव अथवा कमी के कारण असफलता को प्राप्त होकर सत्ता सुख से वंचित रहता है तथा आजीवन संघर्षरत ही रहता है। भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था के दृष्टिकोण से राजनीति कई स्तरों में विभक्त है। ग्राम पंचायत, जिला परिषद्, नगर निगम, विधानसभा, विधान परिषद्, लोकसभा, राज्यसभा, राष्ट्रपति आदि अनेक संस्थाएँ राजनीतिज्ञों को समाजसेवा का अवसर प्रदान करती हैं। राजनीति के क्षेत्र में कार्य करने वाले कार्यकर्त्ता भी प्रधान, अध्यक्ष, पार्षद, विधायक, सांसद, मन्त्री, मुख्यमन्त्री, प्रधानमन्त्री, राष्ट्रपति आदि पदों की प्राप्ति के लिए सतत प्रयासरत रहते हैं। निरन्तर प्रयासरत रहने के बाद भी सफलता न मिलने पर ऐसे व्यक्ति निराशा को प्राप्त होते हैं और अंततः दैवज्ञों के आश्रय में जाते हैं। इस अवसर पर दैवज्ञों का उत्तरदायित्व है कि वे उन्हें शास्त्रीय आधार पर उचित मार्गदर्शन दें। राजनीति और ज्योतिषशास्त्र जनता से व्यक्तिगत सम्बन्ध, सम्पर्क व सम्वाद स्थापित करने के साथ-साथ, पराक्रम, ओजस्वी वाणी, परम्परागत व वंशानुगत राजनैतिक ज्ञान, कूटनीति का ज्ञान, आकर्षक व्यक्तित्व आदि ऐसे अनेक गुण हैं, जिनके सहयोग से व्यक्ति राजनीति के क्षेत्र में सहजतापूर्वक सफल हो सकता है। ये समस्त अवयव सफलता प्राप्ति में सहायक सिद्ध हो सकते हैं परन्तु यह भी परम सत्य है कि बिना प्रबल भाग्य के इस क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना असम्भव है। व्यक्ति के जन्मांग में स्थिति विभिन्न ग्रह, भावों का बलाबल और ग्रहयोग इस सन्दर्भ में अत्यन्त निर्णायक सिद्ध होते हैं।
महत्त्वपूर्ण ग्रह- राजनीति में सफलता की दृष्टिकोण से सूर्य, गुरु, बुध, शनि, मंगल व राहु अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। जन्मांग में इन ग्रहों का बलाबल ही व्यक्ति की राजनैतिक जीवन की सफलता या असफलता का निर्धारण करता है। ज्योतिषशास्त्र में राहु को राजनीति का कारक माना जाता है। प्रशासन में उच्च पद की प्राप्ति का विचार हम सूर्य से करते हैं। मंगल पराक्रम जबकि बुध वाणी का कारक है। भारतवर्ष के परिदृश्य में यदि राजनीति पर विचार करना है तो हम शनि की उपेक्षा नहीं कर सकते। भारत में प्रजातन्त्र है, तथा भारत की बहुसंख्यक प्रजा गरीब है। अतः जनता का कारक शनि है। व्यक्ति के जन्मांग में उपस्थित बली सूर्य, गुरु, मंगल, बुध, शनि व राहु उसे राजनीतिज्ञ, पराक्रमी, ओजस्वी वक्ता, जनता का प्रिय और उच्च पद प्रदान करने में सहायक सिद्ध होता है। गुरु की प्रबलता के बिना राजनीति के क्षेत्र में सफलता मिलना अत्यन्त कठिन ही माना जा सकता है।
महत्त्वपूर्ण भाव- लग्न, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, षष्ठ, नवम, दशम तथा एकादश भाव राजनीति में सफलता के दृष्टिकोण से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इन भावों का बली होना अथवा उपरोक्त सफलताकारक ग्रहों के साथ संबंधित होना राजनीति के क्षेत्र में सफलता की सम्भावना को बढ़ा देता है। ज्योतिषशास्त्र में किसी भी राजयोग पर विचार करने के क्रम में लग्न स्थान को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना जाता है। बली लग्न भाव तथा लग्नेश जातक को स्वतः राजयोग प्रदान करता है। द्वितीय भाव वाणी व धन का कारक है। बली द्वितीयेश जातक को प्रखर वक्ता तथा धनवान बनाता है। तृतीय स्थान पराक्रम का स्थान है तथा राजनीति के क्षेत्र में पराक्रम का महत्त्व स्वतः सिद्ध है। चतुर्थ स्थान प्रजा का स्थान है प्रजातन्त्र में इस स्थान की अवहेलना नहीं की जा सकती है। चतुर्थ भाव तथा इस भाव के अधिपति का बली होना जनता के साथ सम्बन्धों की प्रगाढ़ता को प्रदर्शित करता है। जन्मांग के षष्ठ भाव से युद्ध का विचार किया जाता है। प्रजातन्त्र में चुनाव युद्ध के समान ही माना जाता है और राजनीति के धुरंधर इस अवसर को युद्ध के रूप में ही लेते हैं। युद्ध में विजय या पराजय का विचार षष्ठ भाव से ही किया जाता है। नवम स्थान भाग्य स्थान है, नवम स्थान तथा नवमेश की प्रबलता ही अंततः व्यक्ति के राजनैतिक जीवन की सफलता का निर्णायक बिन्दु होता है- यादिभाव प्रतिपादित यद्भाग्य भवेत्तत्खलु राजयोगः। । जन्मांग का दशम भाव उच्च राजपद का निर्धारण करता है, जबकि एकादश भाव आय स्थान है। अतः स्पष्ट है कि उपरोक्त भाव तथा इन भावों के अधिपतियों की प्रबलता तथा इनका पारस्परिक सम्बन्ध जातक के राजनैतिक जीवन की सफलता अथवा असफलता की कसौटी कहा जा सकता है।
 कुछ ज्योतिषशास्त्रीय ग्रहयोग-
* चतुर्थ, द्वितीय और तनु भावों के अधिपति अपनी राशियों में हो तथा नवमेश लग्नस्थ हो।
*लग्नेश, चतुर्थेश और नवमेश दशमभाव में युत हों तथा दशमेश स्वगृही हो।
*द्वितीय भाव का अधिपति अपनी उच्च राशि में होकर केन्द्र में स्थित हो।
*लग्न में चन्द्रमा, चतुर्थ भाव में बृहस्पति तथा शनि अपनी-अपनी राशि अथवा उच्च राशियों में स्थित हों।
*दशमेश उच्चराशि का होकर यदि मिश्रग्रह के नवांश में हों।
*दशमेश देवलोकांश में, द्वितीयेश और नवमेश पारावतांश में तथा एकादशेश गोपुरांश में स्थित हों। *तीन ग्रह अपनी-अपनी उच्च राशियों में स्थित हों तो राजकुल में उत्पन्न व्यक्ति राजा बनता है।
*जन्मांग में पाँच ग्रह अपनी उच्च राशियों में स्थित हों तो राजकुल से इतर कुलोत्पन्न जातक भी राजा होता है।
*बृहस्पति की राशि लग्न में हो और तुला में शनि हो तो राजकुलोत्पन्न व्यक्ति राजा और राजकुलेतर व्यक्ति मन्त्री होता है।
*मकर राशि के अतिरिक्त किसी भी राशि का बृहस्पति लग्न में हो तो राजकुलोत्पन्न व्यक्ति राजा होता है।
*लग्नेश यदि केन्द्र में उत्तम बली हो तो मनुष्य राजनीति में सफल होता है भले ही वह ग्वालों के कुल में ही क्यों न पैदा हुआ हो।
*पूर्णबलवान लग्नेश तथा जन्मराशीश केन्द्र में रहकर लग्न को देखें तो सफलता।
*उपरोक्त राज योगों में यदि लग्नेश राशि के पहले द्रेष्काण में हों तो केन्द्रीय मन्त्री या प्रधानमन्त्री मध्य द्रेष्काण में हो तो मुख्यमन्त्री या राज्य सरकार में मन्त्री जबकि तृतीय द्रेष्काण में स्थित लग्नेश स्थानीय स्तर पर राजनैतिक सफलता देता है।
*चतुर्थ भाव में वसिष्ठतारा, सप्तम में शुक्र, लग्न में गुरु तथा दशम भाव में अगस्त्य तारा हो।
*कोई ग्रह नीच राशि में हो तथा उस नीच राशि का स्वामी या उस ग्रह के उच्च राशि का स्वामी केन्द्र में हो।
*यदि दशमेश अष्टम भाव में स्वराशि, मित्रराशि, उच्चराशि या नवांशादि का हो तथा पारावतांश का भी हो।
*दशम भाव में राहु, एकादश में शनि भाग्येश से दृष्ट हो तथा लग्नेश नीच ग्रह से युक्त हो।
*कर्क का गुरु लग्न में, बली शुक्र सप्तम में, पाप ग्रह तीसरे-छठे या ग्यारहवें में और अवशिष्ट ग्रह द्वितीय या द्वादश भाव में हों (नीचवंशोद्भव/नीचकुलोत्पन्न भी राजा)।
*राजनीति में सफलता हेतु राहु का 6-10-11, भाव में होना शुभ संकेत माना जा सकता है।
* सूर्य दशम भाव में उच्च राशि का हो और राहु 6-10-11, भाव में साथ ही द्वितीयेश का दशमेश के साथ सम्बन्ध हो।
*शनि तथा राहु सप्तम भाव में स्थित होकर लग्न अथवा लग्नेश पर दृष्टिपात करें तथा चतुर्थेश व सप्तमेश भी केन्द्र अथवा त्रिकोण भावों में स्थित हों।
            उपरोक्त ग्रहयोगों की परीक्षा सुविख्यात राजनीतिज्ञों की जन्मकुण्डली के साथ भी की जा सकती है। इस सन्दर्भ में पंडित जवाहरलाल नेहरू, श्री लालबहादुरशास्त्री, श्रीमति इंदिरा गाँधी, श्री राजीव गाँधी, श्री वी.पी. सिंह, मुलायम सिंह यादव, सुश्री उमा भारती, श्री नरेन्द्र मोदी आदि की कुण्डलियाँ द्रष्टव्य हैं। प्रसिद्ध राजनेताओं के जन्मांग के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि इनके जन्मांग के लग्न, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, षष्ठ, नवम, दशम तथा एकादश भाव और इनके अधिपतियों का सूर्य, मंगल, बुध, गुरु, शनि व राहु के साथ विशेष सम्बन्ध अवश्य रहा है। जातक के जन्मांग इन ग्रहयोगों की उपस्थित राजनीति के क्षेत्र में उसकी सफलता को सुनिश्चित करती है। भावों, भावेशों तथा ग्रहों के परस्पर सम्बन्धों का विश्लेषण इस प्रसंग में अत्यन्त अनिवार्य है ही, साथ ही साथ प्राचीन ज्योतिषशास्त्रीय ग्रन्थों में आने के ऐसे विशिष्ट योगों का भी उल्लेख मिलता है। जिनकी जन्मांग में उपस्थिति राजनीति के क्षेत्र में सफलता को सुनिश्चित करती है। इस सन्दर्भ में पंचमहापुरुष योग, गजकेसरी योग, त्रिपुष्कर योग, छत्र योग, चामर योग, राजराजयोग, नृपश्रेष्ठ योग, इन्द्रतुल्य राजयोग, शत्रुहन्तानृपयोग, नगरयोग, कलशयोग, पूर्णकुम्भ योग आदि महत्त्वपूर्ण हैं और सद्ग्रन्थों का आश्रय लेकर जातक के जन्मांग में इन योगों की उपस्थिति का भी परीक्षण करना चाहिए। स्पष्ट है कि उपरोक्त विशिष्ट ग्रहयोगों के बलाबल तथा जातक वंश की पृष्ठभूमि का गहन अवलोकन कर उसकी सफलता अथवा असफलता का निर्धारण किया जा सकता है। दशमस्थ या लग्नस्थ ग्रह अथवा सर्वाधिक बली ग्रह की दशा में ही व्यक्ति को सफलता मिलती है।
हस्तरेखाशास्त्र द्वारा सफलता का ज्ञान-
         हस्तरेखा शास्त्र में यदि ज्योतिषशास्त्र का सावधानीपूर्वक विनियोग किया जाए तो फलादेश की सटीकता और बढ़ जाती है। राजनीति के क्षेत्र में सफलता हेतु ज्योतिषाशास्त्र में ऋषियों द्वारा जिन ग्रहों को प्रधानता दी गई है, उन-उन ग्रहों से सम्बन्धित अंगुलियों व पर्वतों की प्रबलता जातक के सफलता की सम्भवना को और अधिक पुष्ट करती है। अभिप्राय है कि बृहस्पति पर्वत, सूर्य पर्वत तथा शनि पर्वत की सबलता राजनीति में सफलता हेतु अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त हथेली का गुलाबी और नर्म होना भी शुभ संकेत देते हैं। व्यक्ति की हथेली में पुण्य रेखा (मणिबंध से अनामिका अंगुली तक गई रेखा) तथा स्पष्ट और सीधी भाग्य रेखा की उपस्थिति राजनीति में सफलता की सूचक है। इसके अतिरिक्त भी अन्य कई चिह्न व्यक्ति को इस क्षेत्र में सफलता प्राप्ति का संकेत देते हैं।
*अंगुष्ठ मध्य में यव का चिह्न हो।
* हाथ या पैर में हाथी, छत्र, मत्स्य, तालाब, अंकुश, वीणा, दर्पण, माला, खड्ग, पर्वत, चक्र, धनुष, ध्वजा, कमल, चामर, आसन, रथ, पालकी, स्तम्भ, कलश, वृक्ष, घोड़ा, गदा, मृदंग, दण्ड आदि का चिह्न हो।
* मस्तक गोल, विशाल ललाट, कान तक विस्तीर्ण नेत्र, आजानबाहु (घुटने तक हाथ वाला) हो।
*सूर्य रेखा मस्तिष्क रेखा में मिलती हो और यह मस्तिष्क रेखा गहरी होनी चाहिए साथ ही यह आगे बढ़कर बृहस्पति पर्वत पर चतुष्कोण का निर्माण करें तो राजनीति के क्षेत्र में सफलता के प्रबल योग बनते हैं।
*सूर्य और गुरु पर्वत की स्थिति उच्च हो और शनि पर स्पष्ट त्रिशूल का चिह्न हो।
*चन्द्र रेखा का भाग्य रेखा से सम्पर्क हो तथा भाग्य रेखा हथेली के मध्य भाग से उत्पन्न होती हो, यही भाग्य रेखा आगे दो भागों में बँट जाए, एक रेखा, गुरु पर्वत की ओर तथा दूरी सूर्य पर्वत की ओर जाए तो भी सफलता।
*अंगुलियों के पहले तथा दूसरे पोरों की सबलता राजनीति की गहन समझ की ओर संकेत देती है।
* इसके अतिरिक्त सीधी और स्पष्ट सूर्य रेखा के साथ-साथ प्रबल गुरु पर्वत भी व्यक्ति को राजनीति के क्षेत्र में निश्चित सफलता दिलाता है।
* गुलाबी नाखून और नुकीली अंगुलियाँ मजबूत जोड़ भी सफलता के सूचक हैं।    
अंकशास्त्र-
    जातक के नामाक्षरों तथा जन्म तिथि को मूलांक व भाग्यांक में परिवर्त्तित करके भी राजनीति के क्षेत्र में सफलता की सम्भावनाओं का अन्वेषण व मूल्यांकन कर सकते हैं। अंकशास्त्रीय विधि में प्रत्येक अंकों के अधिपति के रूप में अलग-अलग ग्रहों की कल्पना की गई है। अंक-1- सूर्य,           2- चन्द्रमा, 3- गुरु, 4- राहु, 5- बुध, 6- शुक्र, 7- केतु, 8- शनि तथा 9- अंक का अधिपति मंगल होता है। ज्योतिषशास्त्रीय सिद्धान्तों में जिन ग्रहों को राजनीति में सफलता के लिए उत्तरदायी माना गया है, उन्हीं ग्रहों द्वारा अधिष्ठित अंक ही इस क्षेत्र में सफलता की सम्भावनाओं को बढ़ा देते हैं। विशेष रूप से मूलांक 1, 8 और 9 वाले जातक राजनीतिज्ञ बन सकते हैं। हम जानते हैं कि मूलांक 1, 8 तथा 9 के स्वामी क्रमशः सूर्य, शनि तथा मंगल हैं तथा यही ग्रह जातक में शासकोचित गुणों का संधान करते हैं। अंकों की परस्पर मित्रता तथा शत्रुता द्वारा जातक के किसी पार्टी अथवा व्यक्ति विशेष के साथ भविष्यकालीन सम्बन्धों तथा सफलता-असफलता को भी जाना जा सकता है। कई बार हम देखते हैं कि एक ही व्यक्ति के कई नाम होते हैं जैसे राशिनाम, घर का नाम, स्कूल का नाम, दोस्तों अथवा कार्यकर्त्ताओं द्वारा दिया गया नाम। इन नामों में से जो सबसे अधिक व्यवहार में आता है, उसी नाम का परीक्षण अंकशास्त्रीय विधि से करना चाहिए। नामाक्षरों की संख्या को जोड़कर भी जातक की सफलता अथवा असफलता का परीक्षण उपरोक्त सिद्धान्तों के आधार पर किया जा सकता है। नवांकों के लिए शुभ वर्षों, मासों, वारों तथा तिथियों का भी निर्धारण किया गया है और इन्हीं के आधार पर चुनाव लड़ने का उपयुक्त वर्ष, नामांकन आदि की उचित व शुभ तिथि का भी निर्धारण सम्भव है।
       

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