Tuesday 28 December 2021
Monday 1 November 2021
रमल ज्योतिषशास्त्रीय पद्धति
Wednesday 28 July 2021
Sunday 30 May 2021
पञ्चधा मैत्री
पञ्चधा मैत्री-
ग्रहों की मैत्री के सन्दर्भ में तीन प्रकार की मैत्री का विचार किया जाता है - (क) नैसर्गिक मैत्री (ख) तात्कालिक मैत्री और (ग) पञ्चधा मैत्री।
(क) नैसर्गिक मैत्री - नैसर्गिक मैत्री के अनुसार चन्द्र, गुरु व मंगल सूर्य के मित्र हैं। चन्द्रमा के मित्र सूर्य व बुध है। मंगल की मित्रता गुरु चन्द्र व सूर्य के साथ होती है। बुध की मित्रता शुक्र व सूर्य के साथ है। गुरु के मित्र सूर्य, चन्द्र व मंगल है। शुक्र के मित्र बुध तथा शनि है। जबकि शनि की नैसर्गिक मित्रता शुक्र व बुध के साथ है। इसी प्रकार सम ग्रहों के रूप में बुध सूर्य के लिए, मंगल-गुरु-शुक्र व शनि चन्द्र के लिए, शुक्र-शनि मंगल के लिए, मंगल-गुरु-शनि बुध के लिए, शनि गुरू के लिए, मंगल-गुरु शुक्र के लिए तथा गुरु शनि के लिए समग्रह होता है। शेष ग्रह शत्रु होते हैं।
निम्नलिखित तालिका द्वारा नैसर्गिक मैत्री को स्पष्ट किया जा रहा है –
ग्रह | मित्र | सम | शत्रु |
सूर्य | चन्द्र, मंगल, गुरु | बुध | शुक्र, शनि |
चन्द्र | सूर्य, बुध | मंगल, गुरु, शुक्र, शनि | - |
मंगल | सूर्य, चन्द्र, गुरु | शुक्र, शनि | बुध |
बुध | सूर्य, शुक्र | मंगल, गुरु, शनि | चन्द्र |
गुरु | सूर्य, चन्द्र, मंगल | शनि | बुध, शुक्र |
शुक्र | बुध, शनि | मंगल, गुरु | सूर्य, चन्द्र |
शनि | बुध, शुक्र | गुरु | सूर्य, चन्द्र, मंगल |
(ख) तात्कालिक मैत्री-
तात्कालिक मैत्री के विषय में कहा गया है कि तात्कालिक मैत्री परिवर्त्तशील होती है। यह हर व्यक्ति के लिए भिन्न-भिन्न होती है। इस सन्दर्भ में आचार्य वराहमिहिर का मत द्रष्टव्य है-
"अन्योन्यस्य धनव्ययायसहजव्याश्पारबन्धुस्थितास्तत्काले सुहृद: स्वतुङ्गभवनेऽप्येकेऽरयस्त्वन्यथा।
व्द्येकानुक्तभवान् सुहृत्समरिपून् संचिन्त्य नैसर्गिकांस्तत्कालेन पुनस्तु तानधिसुहृन्मित्रादिभि: कल्पयेत्।।" -बृहज्जातकम्;2/18
ग्रह के द्वारा अधिष्ठित भाव से दूसरे, तीसरे, चौथे, बारहवें, ग्यारहवें और दसवें इन छः स्थानों में स्थित ग्रह उस ग्रह के तात्कालिक मित्र होते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जिस ग्रह की तात्कालिक मैत्री का विचार करना हो,उस ग्रह द्वारा अधिष्ठित भाव से तीन भाव आगे तथा तीन भाव पीछे में स्थित ग्रह उसके तात्कालिक मित्र होंगे। जबकि इन स्थानों से इतर स्थानों में स्थित ग्रह उस ग्रह के तात्कालिक शत्रु होते हैं। अर्थात् पहले, पाँचवे,छठे,सातवें,आठवें तथा नवें भावों में स्थित ग्रह तात्कालिक शत्रु होंगे। तात्कालिक मैत्री में सम मैत्री का विचार नहीं होता है। निम्नलिखित कुंडली के द्वारा तात्कालिक मैत्री को स्पष्ट किया जा सकता है-
उपरोक्त कुंडली में यदि हम सूर्य की तात्कालिक मैत्री पर विचार करें तो हम पाते हैं कि सूर्य कुंडली के चतुर्थ भाव में स्थित है। अतः सूर्य द्वारा अधिष्ठित भाव से दूसरे, तीसरे, चौथे, बारहवें, ग्यारहवें और दसवें अर्थात् पञ्चम,षष्ठ,सप्तम,तृतीय,द्वितीय तथा लग्न इन छः स्थानों में स्थित ग्रह सूर्य ग्रह के तात्कालिक मित्र होंगे। इस प्रकार पञ्चम,षष्ठ,सप्तम,तृतीय,द्वितीय तथा लग्न भावों में स्थित बुध, शनि, शुक्र ,राहू, चन्द्रमा तथा केतु सूर्य के तात्कालिक मित्र सिद्ध होते हैं।अन्य भावों में स्थित शेष ग्रह गुरु और मंगल सूर्य के शत्रु होंगे।
तात्कालिक मैत्री चक्र-
ग्रह | सूर्य | चन्द्र | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र | शनि |
तात्कालिक मित्र | बु,श,शु,रा,चं,के | ||||||
तात्कालिक शत्रु | गुरु,मंगल |
(ग) पञ्चधा मैत्री- पञ्चधा मैत्री चक्र निर्माण में अतिमित्र, मित्र, सम, शत्रु तथा अतिशत्रु इन पाँच विषयों पर विचार किया जाता है। तात्कालिक मित्रता व नैसर्गिक मित्रता दोनों में ही जो ग्रह मित्र हों वे अतिमित्र होते हैं। जो ग्रह दोनों में शत्रु होता है वह अतिशत्रु होता है। एक में मित्र तथा दूसरी मैत्री में सम हो तो केवल मित्र होता है। इसी प्रकार किसी एक मैत्री में सम हो तथा एक में शत्रु हो तो केवल शत्रु होता है जबकि एक मैत्री में मित्र तथा दूसरे में शत्रु हो तो वह ग्रह सम कहलाता है।
निम्नलिखित सूत्र इस सन्दर्भ में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं-
नैसर्गिक मैत्री | तात्कालिक मैत्री | पञ्चधा मैत्री |
मित्र | मित्र | अतिमित्र |
सम | मित्र | मित्र |
मित्र | शत्रु | सम |
शत्रु | मित्र | सम |
सम | शत्रु | शत्रु |
शत्रु | शत्रु | अतिशत्रु |
अभिप्राय यह है कि यदि कोई ग्रह किसी विशिष्ट ग्रह की नैसर्गिक मैत्री के अनुसार भी मित्र हो तथा तात्कालिक मैत्री में भी मित्र हो तो पञ्चधा मैत्री चक्र में वह अतिमित्र हो जाएगा। निम्नलिखित तालिका के अनुसार पञ्चधा मैत्री चक्र का निर्माण होता है-
पञ्चधा मैत्री चक्र-
ग्रह | अतिमित्र | मित्र | सम | शत्रु | अतिशत्रु |
सूर्य | चन्द्रमा | बुध | मंगल,शुक्र,शनि | ||
चन्द्र | |||||
मंगल | |||||
बुध | |||||
गुरु | |||||
शुक्र | |||||
शनि |
यदि उपरोक्त कुंडली के सन्दर्भ में सूर्य की पञ्चधा मैत्री पर विचार करते हैं तो हम पाते हैं कि सूर्य के नैसर्गिक मित्र- चन्द्रमा,मंगल और गुरु हैं, बुध सम है, जबकि शनि और शुक्र शत्रु हैं। तात्कालिक मैत्री चक्र के अनुसार बुध, शनि, शुक्र ,राहू, चन्द्रमा तथा केतु सूर्य के तात्कालिक मित्र हैं जबकि गुरु और मंगल सूर्य के शत्रु हैं। अतएव पञ्चधा मैत्री में चन्द्रमा सूर्य का अतिमित्र ( मित्र+मित्र = अतिमित्र ) होगा, क्योंकि वह चन्द्रमा नैसर्गिक मैत्री और तात्कालिक मैत्री दोनों ही जगह सूर्य का मित्र है।
बुध नैसर्गिक मैत्री में तो सूर्य का सम है परन्तु उपरोक्त कुंडली की तात्कालिक मैत्री चक्र में सूर्य का मित्र है,अतः पञ्चधा मैत्री में बुध सूर्य का मित्र होगा – “ सम + मित्र = मित्र ” ।
मंगल नैसर्गिक मैत्री में सूर्य का मित्र है, परन्तु यहाँ तात्कालिक मैत्री के अनुसार सूर्य का शत्रु है अतः पञ्चधा मैत्री के अनुसार मंगल सूर्य के लिए सम हो जाएगा ( मित्र + शत्रु = सम ) । इसी प्रकार शनि और शुक्र नैसर्गिक मैत्री में सूर्य के शत्रु हैं परन्तु इस कुंडली की तात्कालिक मैत्री में सूर्य के मित्र है, अतः शुक्र और शनि पञ्चधा मैत्री के अनुसार सूर्य के सम हो जायेंगे ( शत्रु + मित्र = सम )।
उपरोक्त उदाहरण कुंडली में कोई ग्रह ऐसा नहीं है जो नैसर्गिक मैत्री में तो सूर्य का सम हो, परन्तु साथ ही तात्कालिक मैत्री के अनुसार सूर्य का शत्रु भी हो, अतः पञ्चधा मैत्री चक्र में सूर्य का कोई शत्रु ग्रह नहीं होगा।
ठीक इसी तरह ऐसे ग्रह का भी अभाव है जो नैसर्गिक और तात्कालिक दोनों ही मैत्री चक्र में सूर्य का शत्रु हो। अतः पञ्चधा मैत्री में सूर्य का कोई अतिशत्रु भी नहीं है।
उपरोक्त प्रविधि का आश्रय लेकर अन्य ग्रहों की पञ्चधा मैत्री को स्पष्ट किया जा सकता है।