Friday 25 January 2019

सर्वविध समृद्धि और अष्टलक्ष्मी उपासना


शक्ति उपासना पद्धति के समान ही महालक्ष्मी की उपासना पद्धति का भी तन्त्रशास्त्र में विशद् वर्णन किया गया है। परन्तु जिस प्रकार माँ दुर्गा के नवविधरूपों तथा दशमहाविद्या आदि स्वरूपों की आराधना प्रचलित है, उस तरह माँ महालक्ष्मी के अष्टविध रूपों अर्थात् ‘अष्टलक्ष्मी’ की पूजन पद्धति प्रचलित नहीं हो सकी। महालक्ष्मी की आराधना मुख्यतः केवल दीपावली पूजन तक ही सीमित हो गई। माँ के इस अष्टलक्ष्मी स्वरूप की उपासना साधकों को शीघ्र की समस्त ऐश्वर्य प्रदान करने में सक्षम है। देवी महालक्ष्मी की इस उपासना पद्धति में आदि लक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, धैर्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी तथा धनलक्ष्मी स्वरूपों की आराधना का विधान है। देवी के ये समस्त स्वरूप जीवन के आरंभ से लेकर मृत्यु के बाद तक की समस्त इच्छाओं को पूर्ण करते हैं। अभिप्राय यह है कि लौकिक समृद्धि से लेकर पारलौकिक जगत की इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए माता महालक्ष्मी के इन अष्टविध स्वरूपों की उपासना तथा साधना अवश्य करनी चाहिए।

आदिलक्ष्मी-
इन्हें महर्षि भृगु की पुत्री के रूप में जाना जाता है। इनका निवास स्थान कमलपुष्प है 
तथा इन्हें धर्म, सद्गुण के साथ-साथ मोक्ष प्रदायिनी भी माना गया है। 
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है अष्टलक्ष्मी के समस्त रूपों में ये सर्वाधिक प्राचीन हैं। इनकी उपासना से मनुष्य धन-धान्य के अविरल प्रवाह को प्राप्त कर सकता है। माता का यह स्वरूप चतुर्भुजा है। जिनके हाथों में कमल तथा श्वेतध्वज है जबकि शेष दो हाथ अभय मुद्रा तथा वरद मुद्रा में होते हैं। माँ आदि लक्ष्मी की उपासना साधक को सर्वविध ऐश्वर्य, धन, सम्पत्ति, भौतिक तथा आध्यात्मिक सुख प्रदान करने में सक्षम है।

धान्यलक्ष्मी-
‘धान्य’ शब्द का अर्थ है अन्न, पोषक पदार्थ आदि। महालक्ष्मी के इस स्वरूप की 
उपासना साधक को स्वास्थ्य, पोषण, भोजन आदि से संबंधित सुख प्रदान करती है। कृषक वर्ग तथा अन्नादि का व्यापार करने वाले व्यक्तियों को माता के इस स्वरूप की उपासना अवश्य करनी चाहिए। देवी के इस स्वरूप की उत्पत्ति समुद्र से हुई है। मां महालक्ष्मी का यह स्वरूप अष्टभुजा देवी का है। ये हरे रंग का परिधान धारण करती हैं। इनके हाथों में कमल, गदा, अनाज की बालियां, गन्ना, केले सुशोभित हैं जबकि अन्य दो हाथ अभय मुद्रा तथा वरद मुद्रा में होते हैं।


धैर्यलक्ष्मी- 
माता का यह स्वरूप साधक को धैर्य प्रदान करता है। आशय यह है कि महालक्ष्मी के इस स्वरूप की उपासना से व्यक्ति प्रत्येक परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम हो जाता है। मां का यह स्वरूप आध्यात्मिक ज्ञान, शास्त्रज्ञान, आदि को विकसित करने वाला तो है ही साथ ही साथ इनकी आराधना समस्त पापों से मुक्त कर भवबंधन से मुक्त करने में भी सक्षम है। विकट परिस्थितियों में यदि कोई भी उपाय न सूझ रहा हो तो माता का यह स्वरूप कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। अत्यन्त प्रतिकूल स्थिति होने पर मां के इस स्वरूप का स्मरण कल्याणप्रद होता है। 


गजलक्ष्मी- 
इनकी उत्पत्ति समुद्र मन्थन से हुई थी। माता का यह स्वरूप वाहन संबंधी सुख तथा पशु इत्यादि से संबंधित वैभव का सूचक है। इनकी उपासना साधक को ऐश्वर्य, वाहन सुख, पशुओं का बाहुल्य आदि प्रदान करती है। महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण इन्द्र का खोया हुआ ऐश्वर्य माता गजलक्ष्मी के द्वारा ही स्थिर हुआ था। माता का यह स्वरूप चतुर्भुजा है। इनके दो हाथों में कमलपुष्प सुशोभित हैं तथा शेष दो हाथ अभय व वरद मुद्रा में हैं। देवी के इस स्वरूप का अभिषेक दो दिव्य हाथी जलकलशों द्वारा करते रहते हैं। मां गजलक्ष्मी अपने साधकों की दुर्गति का नाश करने वाली हैं।


संतानलक्ष्मी-
माता का यह स्वरूप छः भुजाओं से युक्त है। इनके हाथों में जलकलश, खड्ग, ढाल सुशोभित रहते हैं। माता के इस स्वरूप की गोद में एक शिशु भी स्थित है। माता के इस स्वरूप की आराधना साधक को संतानविषयक समस्त सुख प्रदान करती है। संतानहीनता की स्थिति में मां महालक्ष्मी के इस दिव्य स्वरूप की आराधना शीघ्र इष्टफल प्रदान करने वाली है। महालक्ष्मी स्वयं मातृस्वरूपा है तथा उनका यह स्वरूप मानव मात्र के लिए मातृसुख प्रदातृ है। 


विजयलक्ष्मी-
समस्त प्रकार का विजय प्रदान करने वाला माता का यह स्वरूप अष्टभुजा देवी का है। लाल वस्त्रें से सुशोभित माता का यह स्वरूप चक्र, शंख, खड्ग, ढाल, कमल तथा पाश से युक्त तथा कमलासन पर आसीन है। शेष दो हाथ अभय और वरद मुद्रा में हैं। जीवन के प्रवाह में आनेवाली विभिन्न समस्याओं, युद्ध तथा अवरोधों पर विजय प्राप्ति हेतु माता विजय लक्ष्मी की आराधना सर्वश्रेष्ठ है। न्यायालय संबंधी समस्याओं में विजयलक्ष्मी देवी का अनुष्ठान चमत्कारिक फल देता है। कहा जाता है कि आद्य गुरू शंकराचार्य ने महालक्ष्मी के इसी स्वरूप की आराधना करनधारा स्तोत्र में की है। 


विद्यालक्ष्मी-
प्रसिद्ध है कि देवी लक्ष्मी तथा देवी सरस्वती में शाश्वत वैर भाव है। परन्तु देवी महालक्ष्मी का यह स्वरूप समस्त विद्याओं को प्रदान करने वाला है। समस्त कला तथा विज्ञान का मूल केन्द्र इन्हें की माना जाता है। देवी का यह स्वरूप उपासक को अज्ञान के अंधकार से दूर करने वाला है। मन्दबुद्धि बालकों तथा बार-बार परीक्षाओं में असफलता से त्रस्त व्यक्तियों को माता के इस स्वरूप की आराधना अवश्य करनी चाहिए। 


धनलक्ष्मी-
माता का यह स्वरूप आठ भुजाओं वाला है। इनके हाथों में चक्र, शंख, कलश, तीर-धनुष तथा कमल सुशोभित होते हैं। साथ ही माता के दो हाथ अभय तथा वरद मुद्रा में हैं। महालक्ष्मी के इस स्वरूप की उपासना साधक को विपुल धन, स्वर्णादि प्रदान करने वाला माना गया है। जीवन में धन की अल्पता तथा कर्ज इत्यादि के आधिक्य से पीडि़त व्यक्तियों को इनकी शरण में अवश्य जाना चाहिए। 


माता महालक्ष्मी के इन अष्टविध रूपों से संबंधित समस्त सुखों की प्राप्ति तथा सर्वविध बाधाओं से मुक्ति के लिए अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का नित्य 11 बार पाठ करना चाहिए। 


अष्टलक्ष्मी स्तोत्र
सुमनसवंदित सुंदरि माधवि चंद्र सहोदरि हेममये। 
मुनिगण वंदित मोक्षप्रदायिनि मंजुलभाषिणि वेदनुते।।
पंकजवासिनि देवसुपूजित सदगुणवर्षिणि शांतियुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि आदिलक्ष्मि जय पालय माम्।।1।।
अयिकलि कल्मषनाशिनि कामिनि वैदिकरूपिणि वेदमये। 
क्षीरसमुदभव मंगलरूपिणि मंत्रनिवासिनि मंत्रनुते।।
मंगलदायिनि अंबुजवासिनि देवगणाश्रित पादयुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि धान्यलक्ष्मि जय पालय माम्।।2।।
जयवर वर्णिनि वैष्णविभार्गवि मंत्रस्वरूपिणी मंत्रमये।
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद ज्ञानविकासिनि शास्त्रनुते।।
भवभयहारिणी पापविमोचनि साधुजनाश्रित पादयुते। 
जय जय हे मधुसूदन कामिनि धैर्यलक्ष्मि जय पालय माम्।।3।।
जय जय दुर्गतिनाशिनि कामिनि सर्वफलप्रद शास्त्रमये।
रथगज तुरग पदादिसमानुत परिजनमंडित लोकनुते।।
हरि-हर ब्रह्म सुपूजित सेवित तापनिवारिणि पादयुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि श्री गजलक्ष्मि पालय माम्।।4।।
अयि खगवाहिनि मोहिनि चक्रिणि राग विवर्धिनि ज्ञानमये।
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि सप्तस्वरवर गाननुते।। 
सकल सुरासुर देव मुनीश्वर मानववंदित पादयुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि संतानलक्ष्मि पालय माम्।।5।।
जय कमलासनि सदगतिदायिनि ज्ञान विकासिनि गानमये।
अनुदिनमर्चित कुकुंमधूसर भूषितवासित वाद्यनुते।।
कनकधरा स्तुति वैभव वंदित शंकर देशिक मान्य पते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि विजयलक्ष्मि जय पालय माम्।।6।।
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि शोकविनाशिनि रत्नमये।
मणिमय भूषित कर्णविभूषण शांतिसमावृत हास्यमुखे।।
नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणि काम्य फलप्रद हस्तयुते। 
जय जय हे मधुसूदन कामिनि विद्यालक्ष्मि पालय माम्।।7।।
धिमि धिमि धिम् धिमि धिंधिमि धिंधिमि दुंदुभ्निाद सुपूर्णमये।
घुमघुम घुंघुम घुंघुम घुंघुम शंखनिनाद सुवाद्यनुते।।
वेदपुराणेतिहास सुपूजित वैदिकमार्ग प्रदर्शयुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि श्री धनलक्ष्मि पालय माम्।।8।।

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