Monday 18 March 2019

ऊपरी बाधा,निवारण और पञ्चमुखी हनुमत् उपासना



विश्व की प्रत्येक प्राचीन संस्कृति में जीवन तथा मृत्यु के साथ-साथ मरणोत्तर जीवन पर भी असीम विश्वास व्यक्त किया गया है। भारतीय संस्कृति भी इससे अछूती नहीं रही और वैदिक काल से ही इस विषय पर गहन चर्चा उपलब्ध होती है। अथर्ववेद का एक बहुत बड़ा भाग इसी मरणोत्तर जीवन से संबंधित तथ्यों को समर्पित है। भूत, प्रेत जैसी अशरीरी आत्माओं के साथ-साथ विभिन्न तान्त्रिक क्रियाओं का वर्णन इस वैदिक संहिता को अन्य संहिताओं से अलग बनाता है। विश्व की इन सर्वाधिक प्राचीनतम रचनाओं में अशरीरी आत्माओं के उत्पातादि का वर्णन इस समस्या की पुरातनता को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। वेदों के अतिरिक्त अनेक दार्शनिक सम्प्रदायों में भी स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर तथा आत्माविषयक विशद वर्णन उपलब्ध होता है। परन्तु तान्त्रिक ग्रन्थों में ये विषय अधिक मुखरित हैं। अतः आवश्यक है कि हम जान लें कि -

ऊपरी बाधा क्या, क्यों और कब?
क्या?


जीवन जितना सत्य है, उतनी ही मृत्यु भी और उतना ही सत्य है मृत्यु के बाद का जीवन। भारतीय चिन्तन धारा के मूल स्रोतों जैसे वेद, उपनिषद्, महाभारत आदि में इस विषय पर बड़ी ही विस्तृत चर्चा की गई है। मनुष्य मृत्युपर्यन्त आकाङ्क्षाओं के पीछे भागता रहता है और मृत्यु के बाद इन्हीं अधूरी इच्छाओं के कारण वह प्रेतयोनि को प्राप्त होता है। मानव की मृत्यु के बाद सूक्ष्म शरीर का इस पञ्चभूतात्मक शरीर से अलगाव हो जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि सूक्ष्म शरीर निराश्रय नहीं रह सकता-
'न तिष्ठति निराश्रयं लिङ्गम्'
अतः अगला स्थूल शरीर प्राप्त करने तक वह सूक्ष्म शरीर अपनी वासनाओं के अनुसार प्रेत शरीर को ग्रहण कर लेता है। इन्हीं प्रेत शरीरों तथा यदा कदा मनुष्य को आवेशित कर लेने के कारण विकट परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है और यही घटना प्रेतबाधा नाम से जानी जाती है। ऐसा नहीं है कि केवल प्रेतात्माओं के द्वारा ही मनुष्यों को कष्ट पहुँचाया जाता है। कभी-कभी विभिन्न देव योनियाँ जैसे देव, यक्ष, किन्नर, गंधर्व, नागादि भी कुपित होकर कष्टकारक हो जाते हैं। व्यक्ति के शरीर के तापमान में अत्यधिक वृद्धि, उन्माद की अवस्था, शरीर के वजन में वृद्धि या ह्रास आदि अनेक ऐसे संकेत हैं जिनसे ऊपरी बाधा का प्रकोप प्रकट हो जाता है।
क्यों ?


एक बात तो स्पष्ट ही है कि दुर्बल, रोगी, कातर (डरपोक), आत्मबल से हीन तथा कमजोर इच्छाशक्ति वाले लोगों पर यह ऊपरी बाधा अधिक होता हुआ देखा गया है। कभी-कभी दुष्ट तान्त्रिकों द्वारा भी धन के लालच में आकर निकृष्ट प्रेतात्माओं द्वारा मनुष्य को प्रेतबाधा से पीडि़त करने का दुष्कर्म किया जाता है। तीर्थ स्थलों तथा सिद्ध पीठों पर अपवित्र आचरण के कारण भी वहाँ उपस्थित दिव्यात्माएँ क्रोधित होकर कभी-कभी कष्ट पहुँचाने लगती हैं।
कब?
प्रेतात्माओं का आवेश विशेष रूप से दोपहर, सांयकाल तथा मध्यरात्रि के समय होता है। निर्जन स्थान, श्मशान, लंबे समय से खाली पड़े घर आदि भी प्रेतों के वासस्थान माने गए हैं इसलिए यहाँ जाने से बचें। स्त्रियों को बाल खुले रखने से बचना चाहिए विशेष रूप से सांयकाल में। छोटे बच्चों के अकेले रहने पर भी प्रेतों का आवेश हो जाता है।
ऊपरी बाधा निवारण


जहाँ तक ऊपरी बाधा के निवारण का प्रश्न है हनुमान जी की उपासना इस समस्या से मुक्ति के लिए अत्यन्त श्रेष्ठ मानी गई है। प्रसिद्ध ही है -
'भूत पिशाच निकट नहीं आवै।
महावीर जब नाम सुनावै।'
भूत-प्रेत-पिशाच आदि निकृष्ट अशरीरी आत्माओं से मुक्ति के उपायों पर जब हम दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं कि इनसे संबंधित मन्त्रों का एक बड़ा भाग हनुमान जी को ही समर्पित है। ऊपरी बाधा दूर करने वाले शाबर मन्त्रों से लेकर तांत्रिक मंत्रों में हनुमान जी का नाम बार-बार आता है। वैसे तो हनुमान जी के कई रूपों का वर्णन तन्त्रशास्त्र में मिलता है जैसे - एकमुखी हनुमान, पञ्चमुखी हनुमान, सप्तमुखी हनुमान तथा एकादशमुखी हनुमान। परन्तु ऊपरी बाधा निवारण की दृष्टि से पञ्चमुखी हनुमान की उपासना चमत्कारिक और शीघ्रफलदायक मानी गई है। पञ्चमुखी हनुमान जी के स्वरूप में वानर, सिंह, गरुड़, वराह तथा अश्व मुख सम्मिलित हैं और इनसे ये पाँचों मुख तन्त्रशास्त्र की समस्त क्रियाओं यथा मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण आदि के साथ-साथ सभी प्रकार की ऊपरी बाधाओं को दूर करने में सिद्ध माने गए हैं। किसी भी प्रकार की ऊपरी बाधा होने की शङ्का होने पर पञ्चमुखी हनुमान यन्त्र तथा पञ्चमुखी हनुमान लॉकेट को प्राणप्रतिष्ठित कर धारण करने से समस्या से शीघ्र ही मुक्ति मिल जाती है।
प्राण प्रतिष्ठा की सुगम विधि
पञ्चमुखी हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र, यंत्र तथा लॉकेट का पञ्चोपचार पूजन करें तथा उसके बाद निम्नलिखित विधि द्वारा उपरोक्त सामग्री को प्राणप्रतिष्ठित कर लें-

विनियोग
ऊँ अस्य श्री पञ्चमुखीहनुमत्कवचस्तोत्रमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः गायत्री छन्दः, श्री हनुमान् देवता, रां बीजम्, मं शक्तिः, चन्द्र इति कीलकम्, ऊँ रौं कवचाय हुं, ह्रौं अस्त्राय फट्। इति पञ्चमुखीहनुमत्कवचस्य पाठे विनियोगः।

ध्यानम्
अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि  शृणु सर्वांगसुन्दरम्।
यत्कृतं देवदेवेशि ध्यानं हनुमतः प्रियम्।।
पञ्चवक्त्रं महाभीमं कपियूथसमन्वितम्। बाहुभिर्दशभिर्युक्तं, सर्वकामार्थसिद्धिदम्।।
पूर्वं तु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम्। दंष्ट्राकरालवदनं भृकुटीकुटिलेक्षणम्।।
अस्येव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम्। अत्युग्रतेजोवपुषं भीषणं भयनाशनम्।।
पश्चिमे गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम्। सर्वनागप्रशमनं सर्वभूतादिकृन्तनम्।।
उत्तरे शौकरं वक्त्रं कृष्ण दीप्तनभोमयम्।
पाताले सिद्धिवेतालं ज्वररोगादिकृतनम्।।
ऊर्ध्वं ह्याननं घोरं दानवान्तकरं परम्।
येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र ताटकाय महाहवे।।
दुर्गतेश्शरणं तस्य सर्वशत्रुहरं परम्।
ध्यात्वा पञ्चमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम्।।
खंगं त्रिशूलं खट्वांगं, पाशमंकुशपर्वतम्।
मुष्टौ तु मोदकौ वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुम्।।
भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रां दशमं मुनिपुंगव। एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भयापहम्।।
दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्य गन्धानुलेपनम्।
सर्वैश्वर्यमयं देवं हनुमद्विवश्वतोमुखम्।।
पञ्चास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णवक्त्रं सशंखविभृतं कविराजवीर्यम्।
पीताम्बरादिमुकुटैरपि शोभितांगं पिंगाक्षमञ्जनिसुतं ह्यनिशं स्मरामि।।
मर्कटस्य महोत्साहं सर्वशोकविनाशनम्।
शत्रुसंहारकं चैतत्कवचं ह्यपदं हरेत्।।
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय फट् स्वाहा।।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पूर्वकपिमुखाय सकलशत्रुसंहारणाय स्वाहा।।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय उत्तरमुखाय आदिवराहाय सकलसम्पत्कराय स्वाहा।।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय सकलजनवश्यकराय फट् स्वाहा।।
           ।।इति मूल मन्त्रः।।

ॐ अस्य श्री पञ्चमुखीहनुमत्कवचस्तोत्रमन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिःअनुष्टुप् छन्दः, श्रीरामचन्द्रो देवता, सीतेति बीजम्, हनुमानिति शक्तिः, हनुमत्प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।।
पुनर्हनुमानिति बीजम्। ॐ वायुपुत्र इति शक्तिः। अञ्जनीसुतायेति कीलकम्। श्री रामचन्द्रवरप्रसाद सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।।

करन्यास
ॐ हं हनुमते अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ऊँ वं वायुपुत्रय तर्जनीभ्यां नमः।
ऊँ अं अञ्जीनीसुताय मध्यमाभ्यां नमः।
ऊँ रां रामदूताय अनामिकाभ्यां नमः।
ऊँ रुं रुद्रमूर्तये कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ऊँ सं सीताशोकनिवारणाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।

हृदयादिन्यास
ऊँ अञ्जनीसुताय हृदयाय नमः।
ऊँ रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा।
ऊँ वायुपुत्राय शिखायै वषट्।
ऊँ कपियूथपाय कवचाय हुम्।
ऊँ रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट्।
ऊँ पञ्चमुखीहनुमते अस्त्राय फट्।
ऊँ श्रीरामदूताय आञ्जनेयाय वायुपुत्राय महाबलाय सीताशोकनिवारणाय महाबलप्रचण्डाय लंकापुरीदहनाय फाल्गुनसखाय कोलाहलसकलब्रह्माण्डविश्वरूपाय सप्तसमुद्रनिरन्तरोल्लंघिताय पिंगलनयनायामितविक्रमाय सूर्यबिम्बफलसेवाधिष्ठित निराकृताय सञ्जीवन्या अंगदलक्ष्मणमहाकपिसैन्यप्राणदात्रे दशग्रीवविध्वंसनाय रामेष्टाय सीतासहरामचन्द्रवर प्रसादाय षट्प्रयोगागमपञ्चमुखीहनुमन्मन्त्रजपे विनियोगः।।

दिग्बन्धन
ऊँ हरिमर्कटमर्कटाय फट् स्वाहा।
ऊँ हरिमर्कटमर्कटाय वं वं वं वं वं स्वाहा। 
ऊँ हरिमर्कटमर्कटाय फं फं फं फं फं फट् स्वाहा (इति पूर्वे)।
ऊँ मर्कटमर्कटाय खं खं खं खं खं मारणाय स्वाहा।
ऊँ हरिमर्कटमर्कटाय ठं ठं ठं ठं ठं स्तम्भनाय स्वाहा। (इति दक्षिणे)।
ऊँ हरिमर्कटमर्कटाय डं डं डं डं डं आकर्षणाय सकलसम्पत्कराय पञ्चमुखिवीर हनुमते स्वाहा।
ऊँ उच्चाटने ढं ढं ढं ढं ढं कूर्ममूर्तये पञ्चमुखहनुमते परयन्त्रपरतन्त्रोच्चाटनाय स्वाहा (इति पश्चिम)।
ऊँ कं खं गं घं घं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं स्वाहा (इत्युत्तरे)।
 इति दिग्बन्धः।
ऊँ पूर्वकपिमुखे पञ्चमुख हनुमते ठं ठं ठं ठं ठं सकलशत्रुसंहारणाय फट् स्वाहा।
ऊँ दक्षिणमुखे पञ्चमुखहनुमते करालवदनाय नरसिंहाय ह्रां ह्रां ह्रां ह्रां ह्रां सकलभूतप्रेतदमनाय फट् स्वाहा।।
ऊँ पश्चिममुखे गरुड़ासनाय पञ्चमुखवीरहनुमते मं मं मं मं मं सकलविषहराय फट् स्वाहा।।
ऊँ उत्तरमुखे आदि वाराहाय लं लं लं लं लं नृसिंहाय नीलकण्ठाय पञ्चमुखहनुमते फट् स्वाहा।।
ऊँ अञ्जनीसुताय वायुपुत्राय महाबलाय रामेष्टफाल्गुनसखाय सीताशोकनिवारणाय लक्ष्मणप्राणरक्षकाय कपिसैन्यप्रकाशाय दशग्रीवाभिमानदहनाय श्रीरामचन्द्रवरप्रसादकाय महावीर्याय प्रथमब्रह्माण्डनायकाय पञ्चमुखहनुमते भूतप्रेतपिशाचब्रह्मराक्षसशाकिनी डाकिनी अन्तरिक्षग्रहपरमन्त्रपरयन्त्रपरतन्त्र सर्वग्रहोच्चाटनाय सकलशत्रुसंहारणाय पञ्चमुखहनुमद्वरप्रसादसर्वरक्षकाय जं जं जं जं जं फट् स्वाहा।

इसके बाद कवचमहात्म्य का पाठ कर लें -
इदं कवचं पठित्वा तु महाकवचं पठेन्नरः।
एकवारं पठेन्नित्यं सर्वशत्रुनिवारणम्।।
द्विवारं तु पठेन्नित्यं पुत्रपौत्रप्रवर्धनम्।
त्रिवारं तु पठेन्नित्यं सर्वसम्पत्करं परम्।।
चतुर्वारं पठेन्नित्यं सर्वलोकवशीकरम्।
पञ्चवारं पठेन्नित्यं सर्वरोगनिवारणम्।।
षड्वारं पठेन्नित्यं सर्वदैव वशीकरम्।
सप्तवारं पठेन्नित्यं सर्वकामार्थसिद्धदम्।।
अष्टवारं पठेन्नित्यं सर्वसौभाग्यदायकम्।
नववारं पठेन्नित्यं सर्वैश्वर्यप्रदायकम्।।
दशवारं पठेन्नित्यं त्रैलोक्यज्ञानदर्शनम्।
एकादशं पठेन्नित्यं सर्वसिद्धिंलभेन्नरः।।
कवचं स्मृतिमात्रेण, महालक्ष्मीफलप्रदम्।
तस्माच्च प्रयता भाव्यं कार्य हनुमतः प्रियम्।।
तदुपरान्त हनुमत्सहस्रनाम के मन्त्रों से हवन सामग्री की आहुति दें।
उपरोक्त विधि से प्राण प्रतिष्ठित यन्त्र को पूजन स्थान पर रखें तथा लॉकेट को धारण करें। उपरोक्त अनुष्ठान को किसी भी मंगलवार के दिन किया जा सकता है। उपरोक्त विधि अपने चमत्कारपूर्ण प्रभाव तथा अचूकता के लिए तंत्रशास्त्र में दीर्घकाल से प्रतिष्ठित है। श्रद्धापूर्वक किया गया उपरोक्त अनुष्ठान हर प्रकार की ऊपरी बाधा से मुक्ति प्रदान करता है।

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