Saturday 15 September 2018

स्वप्नविज्ञान : एक शास्त्रीय समीक्षा


        भारतीय मनीषियों ने विश्व में उपलब्ध समस्त विषयों का दार्शनिक पृष्ठभूमि में विश्लेषण करने की परम्परा का सूत्रपात अत्यन्त प्राचीन काल से ही कर दिया था। भौतिक पदार्थों से लेकर, मोक्षादि दृष्टातीत व अलौकिक विषय भी इससे अछूते नहीं रहे थे। ‘स्वप्न’ तथा इससे जुड़े समस्त विषयों का विस्तृत विवेचन प्राचीन संस्कृत साहित्य में प्राप्त होता है। ज्ञान विज्ञान की प्रत्येक शाखा अपने मूल रूप में वेदों में प्राप्त होती है। उपनिषदों, पुराणों तथा अन्य साहित्यिक ग्रंथों में इस विषय पर बारम्बार चर्चा की गई है।
स्वप्न - प्रत्येक चलायमान वस्तु को विश्राम की आवश्यकता होती है। मनुष्य पूरे दिन की भागदौड़ के बाद जब मानसिक तथा शारीरिक विश्राम पाने के लिए निंद्रा का आश्रय लेता है, तभी से ‘स्वप्न’ की एक आकर्षक, गूढ़, गम्भीर तथा आध्यात्मिक सृष्टि का प्रारंभ हो जाता है। स्वप्न निन्द्रामग्न जीव के मस्तिष्क का जीवन है - ऐसा जीवन, जिसमें हमारे जाग्रत जीवन का भी अंश होता है तथा इसके अतिरिक्त कुछ अन्य अनबूझे तथा गूढ विषय भी सम्मिलित होते हैं। भारतीय ऋषियों ने इस सृष्टि में ‘आत्मा’ तथा ‘परमात्मा’ इन दोनों तत्त्वों के अस्तित्व को स्वीकार किया है। जीव की मुख्यतया तीन अवस्थाएँ होती हैं -
(१)जाग्रतावस्था - इस अवस्था में मनुष्य अपनी सम्पूर्ण चेतना पाँच ज्ञानेन्द्रियों, पाँच कर्मेन्द्रियों, पाँच प्राण तथा चारों अंतःकरण से युक्त होकर इस लोक के समस्त विषयों का साक्षात्कार व उपभोग करता है।
(२)स्वप्नावस्था - इस लोक में अपनी दिनचर्या से थका मनुष्य विश्राम करने के लिए निंद्रा का आश्रय लेता है। निंद्रा प्रारंभ होेते ही ‘स्वप्न’ की संभावना प्रारंभ हो जाती है। इस अवस्था में मनुष्य अपने अवचेतन मन के सहयोग से स्वप्न की एक नई सृष्टि का सृजन कर लेता है।
(३)सुषुप्ति - यह निंद्रा की गहरी अवस्था है। स्वप्नावस्था के बाद की अवस्था। इस अवस्था में मनुष्य ‘स्वप्नादि’ का अनुभव नहीं करता है - "यत्र सुप्तो न कञ्चन कामं कामयते न कञ्चन स्वप्नं पश्यति तत्सुषुप्तम्।"

इन तीनों अवस्थाओं के अतिरिक्त एक ‘तुरीयावस्था’ का भी अस्तित्व है, परन्तु इस अवस्था से सामान्य मानवों का साक्षात्कार नहीं हो पाता है। तुरीयावस्था में योगीजन ही जा पाते हैं जाग्रतावस्था में मानव अपने समस्त ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों तथा मन की सहायता से इस संसार में उपलब्ध समस्य विषयों का साक्षात्कार एवं भोग करता रहता है। लौकिक कार्यों को सम्पादित करने से थका-हरा मनुष्य स्वयं को मानसिक तथा शारीरिक आराम देने के लिए निंद्रा का आश्रय लेता है। निंद्रा अवस्था में जाते ही ‘स्वप्न दर्शन’ की संभावना का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। ‘स्वप्न’ की इस अवस्था में समस्त कर्मेन्द्रियाँ तथा ज्ञानेन्द्रियाँ मन में विलीन हो जाती हैं, केवल मन क्रियाशील रहता है। मन की इसी अवस्था में मनुष्य अपनी अतृप्त इच्छाओं, पूर्व जन्म के संस्कारों तथा दैवीय प्रेरणा से प्रेरित होकर स्वप्नों का दर्शन करता है। निंद्रा के अत्यधिक गहन हो जाने के बाद मन हृदय में प्रविष्ट होता है, जहाँ परमात्मा अंगुष्ठमात्र परिमाण से उपस्थित रहते हैं। मन के हृदय में पहुँचते ही स्वप्नावस्था का अंत हो जाता है तथा ‘सुुषुप्ति’ की अवस्था प्रारंभ हो जाती है। ‘सुषुप्ति’ की अवस्था में स्वप्न नहीं आते हैं।

 ‘स्वप्न’ की उत्पत्ति (भारतीय मत) - ऋग्वेद के ‘दुःस्वप्ननाशन’ सूक्त तथा यजुर्वेद के ‘शिवसंकल्प सूक्तः में ‘स्वप्न’ की उत्पत्ति के मौलिक सिद्धान्त प्राप्त होते हैं। यजुर्वेद के शिवसंकल्प सूक्त में मन की चेतन तथा अवचेतन दोनों ही अवस्थाओं के साथ-साथ स्वप्न का भी वर्णन किया गया है - " यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवेति।" इसी प्रकार ऋग्वेद का ‘दुःस्वप्ननाशन सूक्त’ स्वप्नों के शुभाशुभत्व का निर्देश करता है। परन्तु उपनिषदों में, विशेषकर ‘प्रश्नोपनिषद्’ तथा ‘माण्डूक्योपनिषद’ में स्वप्न के क्रिया विज्ञान पर विशेष प्रकाश डाला गया है। इसके अनुसार जिस प्रकार सूर्य के अस्त होने के समय उसकी किरणें समस्त संसार से सिमटकर सूर्य में समा जाती है, ठीक उसी तरह गहरी निंद्रा के समय समस्त इन्द्रियाँ मन में विलीन हो जाती हैं। उस समय इन्द्रियों के समस्त कार्य समाप्त हो जाते हैं। मनुष्य के जागने पर पुनः ये समस्त इन्द्रियाँ मन से पृथक् होकर पुनः अपने-अपने कार्य में ठीक उसी प्रकार लग जाती हैं, जिस प्रकार सूर्योदय होते ही सूर्य की किरणें पुनः चारों ओर फैल जाती है। मानव शरीर में व्याप्त पञ्चवायु में से उदानवायु, मन को निंद्रा के समय हृदय में उपस्थित परमात्मा के पास ले जाती है, जहाँ मन के द्वारा मनुष्य निंद्रा से उत्पन्न विश्राम रूपी सुख का अनुभव करता है। ‘स्वप्न’ की उत्पत्ति का सिद्धान्त ‘प्रश्नोपनिषद्’ के इस मंत्र में सन्निहित है -
"अत्रैष देवः स्वप्ने महिमामनुभवति। यद् दृष्टं दृष्टमनुपश्यति श्रुतं श्रुतमेवार्थमनु शृणोति। देशदिगन्तरैश्च प्रत्यनुभूतं पुनः पुनः प्रत्यनुभवति दृष्टं चादृष्टं च श्रुतं चाश्रुतं चानुभूतं चाननुभूतं च सच्चाचच्च सर्वं पश्यति सर्वः पश्यति।"
     अर्थात् मानव शरीर में स्थित जीवात्मा ही मन और सूक्ष्म इन्द्रियों के द्वारा स्वप्न का अनुभव करता है। जीवात्मा स्वयं द्वारा पूर्व में देखे गए, सुने गए, अनुभव किए गए और संपादित किए गए घटनाओं का उसी प्रकार स्वप्न में भी अनुभव करता है। परन्तु यह आवश्यक नहीं कि सिर्फ निंद्रा से पूर्व की जाग्रतावस्था में घटित विभिन्न घटनाएँ ही ‘स्वप्न’ के विषय होते हैं। जाग्रतावस्था में घटित अलग-अलग घटनाओं के विभिन्न अंश आपस में मिलकर एक नए स्वप्न की पटकथा तैयार करते हैं। इसके अतिरिक्त पूर्वजन्म के संस्कार, दबी हुई आकांक्षाएँ तथा परमपिता की प्रेरणा, ‘स्वप्नों’ की उत्पत्ति के कारण होते हैं। भारतीय ऋषियों ने स्वप्न को भविष्य में होने वाली घटनाओं का शुभाशुभ सूचक माना है। विभिन्न पुराणों तथा धर्म ग्रन्थों में उपलब्ध अख्यान भी इस तथ्य का समर्थन करते हैं।

स्वप्नों की उत्पत्ति के पाश्चात्य सिद्धान्त - पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों ने भी ‘स्वप्न’, इसके कारणों तथा इसकी उत्पत्ति विज्ञान पर विशेष रूप से विचार किया है। इन विचारकों में सिगमण्ड फ्रायड, युंग, अर्नेस्ट हार्मेन आदि प्रमुख हैं। फ्रायड के मतानुसार हमारे सारे स्वप्न, ‘काम-प्रवृत्ति’ से सम्बन्धित इच्छाओं की पूर्त्ति के साधन होते हैं। केवल कुछ ही स्वप्न है जो हमारी शारीरिक इच्छाओं जैसे भूख, प्यास आदि से नियंत्रित होती है। जैसे उपवास के साथ भोजन का स्वप्न, प्यास के समय किसी नदी, झरने या पानी पीने का स्वप्न। इन विचारकों का मत है कि मनुष्य की दमित तथा अपूर्ण इच्छाओं, कामवासनाओं तथा तात्कालिक परिस्थितियों के कारण मनुष्य को स्वप्न आते हैं। स्वप्न में दिखनेवाले विषय ठीक वर्त्तमान परिस्थिति के समान हो सकते हैं अथवा ये स्वप्न सांकेतिक रूप में भी हो सकते हैं। इन मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि स्वप्न किसी इच्छा के कारण पैदा होते हैं और स्वप्न की वस्तु उस इच्छा को प्रकट करती है। जैसे परीक्षा के समय विद्यार्थी को आनेवाले स्वप्न, किसी आत्मीय संबंधी के बीमार होने पर आनेवाले स्वप्न, अपूर्ण यौन इच्छाओं से संबंधित स्वप्न, घर में विवाहादि उत्सवों से संबंधित स्वप्न आदि उपरोक्त सिद्धान्तों को प्रथमदृष्ट्या सत्य मानने पर बाध्य करते हैं। परंतु उपरोक्त सिद्धान्त स्वप्नों के स्वरूप का एकांगी स्वरूप ही दिखाते हैं, क्योंकि कभी-कभी ऐसे स्वप्न भी आते हैं जिनका मनुष्य के भूत, भविष्य या वर्त्तमान से कोई संबंध नहीं होता है। सी.जी. युंग का विचार इससे कुछ विपरीत है। उनके मतानुसार स्वप्न अप्रमाणित सत्य की आध्यात्मिक घोषणाओं की, भ्रम की, परिकल्पना की, स्मृतियों की, योजनाओं की, पुर्वानुमानों की, अतार्किक अनुभवों की यहाँ तक की पराचित्त ज्ञान की अभिव्यक्ति हो सकते हैं। भौतिकतावादी होने के कारण अधिकतर पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक स्वप्न की आध्यात्मिक उत्पत्ति विधि तथा इसकी महत्ता को समझ नहीं सके हैं। फिर भी युंग, अल्फ्रेड एडलर सदृश पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक स्वप्न की आध्यात्मिक को समझने के करीब पहुँच चुके थे।
स्वप्न के प्रकार - स्वप्नों के दो प्रकार माने गए हैं - (१) दिवास्वप्न तथा (२) निशास्वप्न। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि दिवास्वप्न दिन में देखे जाने वाले स्वप्न हैं जबकि निशास्वप्न रात्रिकालीन स्वप्न हैं। इन दोनों स्वप्नों में कुछ मौलिक अंतर भी हैं -
(१)दिवास्वप्नों में व्यक्ति अपनी इच्छा से ही अपनी अतृप्त इच्छाओं की कल्पना में पूर्त्ति कर लेता है। परन्तु निशास्वप्नों में अचेतन मन की अतृप्त इच्छाएँ व्यक्ति की इच्छा न होने पर भी प्रकट होती हैं।
(२)दिवास्वप्नों में व्यक्ति अपनी अतृप्त इच्छाओं को उसी ढंग से तृप्त करने की चेष्टा करता है, जिस ढंग से होनी चाहिए निशास्वप्नों में इन इच्छाओं की तृप्ति का ढंग सांकेतिक होता है। जिसका विश्लेषण करने पर इन अतृप्त इच्छाओं का स्वरूप समझा जा सकता है।
(३)दिवास्वप्न सदा अतृप्त इच्छाओं से प्रेरित होते हैं, परन्तु सभी निशास्वप्नों पर यह बात लागू नहीं होती। कुछ निशास्वप्नों में भविष्य से संबंधित सूचनाएँ भी छिपी होती हैं।
स्वप्न घटनाओं के सूचक या एक सामान्य मनोवैज्ञानिक घटना
    भारतीय विचारधारा तथा पाश्चात्य विचारधारा के सम्यक् अवलोकन करने पर स्पष्ट हो जाता है कि न तो समस्त स्वप्न एक मनोवैज्ञानिक घटना मात्र हैं और न ही भविष्य में घटने वाली शुभाशुभ घटनाओं के सूचक। किसी भी स्वप्न का विश्लेषण करने से पूर्व यदि स्वप्न द्रष्टा मनुष्य की पृष्ठभूमि का गहन अध्ययन किया जाए तो स्वप्न की प्रकृति को स्पष्टतया समझा जा सकता है। किसी सांसारिक घटना से प्रभावित स्वप्न निष्फल होते हैं। जैसे यदि किसी मनुष्य के घर में शादी की बात चल रही हो और उसने शादी का सपना देखा तो यह स्वप्न व्यर्थ होगा। इसी प्रकार यदि व्यक्ति वैष्णो देवी माता का दर्शन करने का कार्यक्रम बना रहा हो और उसने माता का अथवा पहाड़ पर चढ़ने का सपना देखा तो यह स्वप्न भी निष्फल ही होगा। परंतु जब हम शुभाशुभ फल अथवा भविष्य में घटनेवाली किसी घटना की सूचना देने में समर्थ स्वप्न की प्रकृति पर विचार करते हैं, तो यह अनिवार्य है कि यह स्वप्न किसी भी रूप से उस मनुष्य की मानसिक, वैचारिक अथवा कार्यशैली से प्रभावित न हों। संस्कृति साहित्य के विभिन्न ग्रंथों तथा पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों की रचनाओं में ऐसे सहस्रों उदाहरण भरे पड़े हैं जिससे स्वप्नों को भविष्य में घटनेवाली शुभाशुभ सूचनाओं का सूचक होने के सिद्धान्त की पुष्टि होती है। हम दैनिक जीवन में भी स्वप्नों के इस सामर्थ्य का अनुभव करते रहते हैं। अतः आवश्यक है कि स्वप्नों से संबंधित फलादेश करने में पर्याप्त सर्तकता बरती जाए।
विभिन्न सम्प्रदायों में स्वप्न - विश्व में प्रचलित सभी मुख्य सम्प्रदायों ने स्वप्न को मान्यता दी है। हिन्दू धर्म में ‘स्वप्न’ को विशेष मान्यता दी गई है। भारतीय दर्शन में इसका आश्रय लेकर ब्रह्मतत्व को समझाने का प्रयास किया जाता रहा है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, महाभारत, रामायण इन समस्त ग्रंथों में यत्र-तत्र स्वप्न से संबंधित आख्यान प्राप्त होते हैं। कुरान की कई आयतें हजरत पैगम्बर मुहम्मद साहब के स्वप्न में भी अवतरित हुई थीं। बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध के जन्म से पूर्व उनकी माता को स्वप्न में सफेद हाथी के दर्शन हुए। महावीर स्वामी के जन्म से पूर्व उनकी माता महारानी त्रिशला ने भी 14 अत्यन्त शुभ स्वप्न देखे थे।
स्वप्न का शुभाशुभत्व - भारतीय परम्परा ‘स्वप्न’ की आध्यात्मिकता के साथ-साथ इसके शुभाशुभ को भी समान रूप से स्वीकार करती है। विभिन्न पुराणों में स्वप्नों के शुभाशुभ फलों पर विशेष रूप से चर्चा की गई है। ब्रह्मवैवर्त्त पुराण तथा अग्निपुराण में इस विषय पर विशेष रूप से चर्चा की गई है।
स्वप्नफलदायक कब? - समस्त स्वप्न शुभ अथवा अशुभ फल बताने में समक्ष नहीं होते हैं। किसी घटना के कारण आनेवाले स्वप्न निष्फल होते हैं। दिन में सोते समय दिखने वाले स्वप्न भी अपना फल नहीं देते हैं। शुभ स्वप्न देखने के बाद जागरण तथा हरिनाम का जप करते हुए रात्रि व्यतीत करने पर ही शुभ फलों की प्राप्ति होती है। पुनः सो जाने पर स्वप्न का शुभ अथवा अशुभ फल नष्ट हो जाता है। बिना किसी पूर्व घटना अथवा तनाव से प्रभावित होकर आनेवाले स्वप्न ही शुभाशुभ फलप्रद होते हैं। चिन्तायुक्त, जड़तुल्य, मल-मूत्र के वेग से पीडि़त, भय से व्याकुल, नग्न और उन्मुक्त केश व्यक्ति को अपने देखे हुए स्वप्न का कोई फल प्राप्त नहीं होता है।
‘स्वप्न’ फल की प्राप्ति की अवधि - भारतीय ऋषियों ने स्वप्नजन्य शुभाशुभ फलों की प्राप्ति में लगनेवाले समय का भी निर्धारण किया है। सम्पूर्ण रात्रि को चार प्रहरों में विभक्त किया गया है। रात्रि के प्रथम प्रहर में देखे गए स्वप्न का शुभाशुभ फल एक वर्ष में प्राप्त होता है। द्वितीय प्रहर के स्वप्न का फल आठ मास में मिलता है। यदि स्वप्न रात्रि के तृतीय प्रहर में आए तो व्यक्ति को इस स्वप्न का फल तीन महीने में प्राप्त है। रात्रि का चतुर्थ प्रहर अत्यन्त शुभ माना जाता है। समस्त सात्त्विक शक्तियाँ इस काल में सक्रिय रहती हैं। यह समय ‘ब्रह्ममुहूर्त्त’ के नाम से प्रसिद्ध है। ब्रह्ममुहूर्त्त में देखे गए स्वप्न का फल एक पक्ष अर्थात् 15 दिन के अन्दर प्राप्त हो जाता है। सूर्योदय के समय का स्वप्न 10 दिन की कालावधि के मध्य ही अपना शुभाशुभ फल प्रदान कर देता है। यदि व्यक्ति ने प्रातःकाल स्वप्न देखा हो तथा स्वप्न दर्शन के पश्चात् ही उसकी नींद खुल गई हो तो यह स्वप्न तत्काल फलदायी होता है। 

       जहाँ तक रात्रि के विभिन्न प्रहरों में आए स्वप्नों से संबंधित फलों की प्राप्ति में लगने वाले समय का प्रश्न है, यह एक अत्यन्त ही जटिल विषय है। तथापि इस विषय को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है। सूर्य सिद्धान्त के अनुसार मनुष्यों का एक वर्ष देवताओं के एक अहोरात्र के बराबर होता है। भारतीय दार्शनिक चिंतन की विचारधारा मनुष्य के भीतर स्थित जीवात्मा तथा परमात्मा में अभेद मानती है। निंद्रा की अवस्था में जीवात्मा का ‘मन’ मनुष्य की हृदयगुहा में स्थित परमात्मा से मिलता है, अतः इस जीवात्मा तथा परमात्मा में ऐक्य हो जाता है। इस सम्पूर्ण निंद्रा काल को उस देव वर्ष या दिव्य वर्ष के रूप में स्वीकार किया जा सकता है जो मनुष्य के 360 दिन के सौर वर्ष के बराबर होता है। इसी निंद्रा काल की अलग-अलग कालाविध अथवा प्रहरों में आनेवाले विभिन्न स्वप्नों को ट्टषियों ने अपने अंतर्ज्ञान, सूक्ष्मदृष्टि तथा पर्यवेक्षण के आधार पर उपरोक्त समय-सीमा में निबद्ध किया है।
विभिन्न स्वप्न फल
1-शुभ स्वप्न एक दृष्टि मेंः
ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित कंस वध के बाद विरहाकुल यशोदा से मिलने दुखी नन्द मथुरा गए तब भगवान श्री कृष्ण ने तत्वज्ञान समझा कर सांत्वना दी। तब नन्द ने लोक कल्याण की भावना से कई प्रश्न श्री कृष्ण से पूछे। उन्होंने श्रीकृष्ण से पूछा - हे प्रभो किस स्वप्न के कारण सुख प्राप्ति के संकेत प्राप्त होते हैं और कौन-कौन से स्वप्न शुभ रहते हैं? श्री कृष्ण द्वारा नन्द को बताए शुभ स्वप्न इस प्रकार हैं -
* धनदायक स्वप्न -
        स्वप्न में गाय, हाथी, घोड़ा, महल, पर्वत, पेड़ पर चढ़ना, भोजन करना, रोना, शस्त्र से जख्मी हो जाएँ, जख्म में कींडे़ पड़े, शरीर में रक्त एवं विष्ठा लगी हो इत्यादि।
* धन प्राप्ति के स्वप्न -
पेशाब से गीला होना, वीर्यपान करना, नर्क जाना, लाल नगरी जाना, लाल समुद्र में प्रवेश करना, अमृतपान करना, हाथी, राजा, सोना, बैल, गायक, दीपक, अन्न, फल, फूल, कन्या, सूत्र, ध्वज, रथ, पानी के महाकुम्भ, पान, सफेद धान, नट, नर्तकी, पादुका देखना, धनुष खींचना, घास का मैदान देखना, दीवार में कील ठोकना, धारदार शस्त्र प्राप्त हो, फूलों से लदा वृक्ष, सर्प , मांस, मछली, मोती, शंख, चन्दन, हीरा, आम, मद्य, आँवला, कमल, घर में वेश्या का प्रवेश होना, ब्राह्मण दम्पति, अनाज, मोतियों का हार, पुष्पांजली, गोरोचन, पताका, हल्दी, गन्ना मिलना, सरोवर, नदी, सफेद सांप, सफेद पर्वत, अग्नि उठाना।
* विश्वविख्यात कवि, विद्वान बनने का स्वप्न-
         स्वप्न में ब्राह्मण- ब्राह्मणी द्वारा महामंत्र दिया जाना, ब्राह्मण द्वारा पढ़ाया जाना, पुस्तक भेंट होना, अलँकारों से सजी कन्या द्वारा ग्रंथ भेंट होना, माँ की तरह पढ़ाया जाना, चश्मा लगाना, सुगन्ध लगाना।
* राजा समान ऊँचा पद पाना -
     ब्राह्मण दम्पति द्वारा मस्तक पर छत्र पकड़ना, सफेद अनाज बिखेरना, अमृत, दही, अच्छा पात्र देना, सफेद फूलमाला पहनकर रथ में बैठकर दही या खीर खाए, हाथी अपनी सूंड से उठाकर अपने मस्तक पर बिठाए, ब्राह्मण जिसे अपनी कन्या दे, स्वप्न में दिव्यनारी आकर कहे 'आप मेरे स्वामी हैं ' और स्वप्न दृष्ट एक दम उठ जाए। गाय का दूध, घी, कमल के पत्ते पर खीर, दही, दूध, घी, शहद एवं मिष्ठान खाए, तैरना, सिंह एवं बड़े जबड़े वाले पशु, सुअर, एवं बन्दरों के कारण पीड़ा, सीढ़ी देखना, टोपी देखना, मकान बनाना, मुरदे से बात करना, बाजार देखना, बड़ी दीवार देखना, धूप देखना।
नोट - स्वप्न में भस्म, कपास, हड्डियाँ इनको छोड़ कर अन्य सभी सफेद वस्तु दिखना शुभ होता है। हाथी घोड़ा ब्राह्मण को छोड़कर अन्य सभी काली वस्तुओं को देखना अशुभ है।
मरा हुआ दीखे =चिरंजीव होवें,
सुखी देखना=दुखी होने का संकेत है।
रोगी हुआ देखना=निरोगता प्राप्त हो
रवि चन्द्र के दर्शन होना।
* धन, विजय, प्रतिष्ठा, सुख, सम्पत्ति, पुत्र प्राप्ति -
          भरा हुआ कलश मिले, सन्तुष्ट ब्राह्मण अपने हृदय से लगाए, हाथ में फूल दे, काली माता के दर्शन, स्फटिक माला तथा इन्द्रधनुष प्राप्त हो, ब्राह्मण आशीर्वाद दे, सन्तुष्ट ब्राह्मण घर पर पधारे, ब्राह्मण दम्पती हँसते हुए फल प्रदान करें, आभूषणों से विभूषित दिव्य ब्राह्मण स्त्री मुस्कराते हुए मकान में प्रवेश करें, पैरों में बेड़ी पड़े, जल, बिच्छु या साँप देखे, सफेद वस्तुओं से अलंकृत स्त्री पुरुष को आलिंगन दें। खेती देखना, नारी देखना, खाई देखना, सफेद फूल देखना, तलवार देखना।
* पत्नी लाभ के स्वप्न -
          घोड़ी, मुर्गा, क्रौंच, पत्ती देखना, अचानक गाय मिलना।
नोट - स्वप्न में जिस घर में सपत्नी ब्राह्मण पधारेगा उस मकान में पार्वती के साथ शिव शंकर एवं लक्ष्मी के साथ नारायण का शुभागमन होता है।
* धन प्राप्ति के अन्य स्वप्न -
      दाँए हाथ का स्पर्श हो, लिंग छेद दर्शन, जी मिचलाना, सूर्य या चन्द्र को गटक जाना, नर मांस भक्षण करना, ऊँचे स्थान पर चढ़कर मिठाई खाए, गहरे पानी में गिरे पड़े, विष्ठा या वमन से बाहर पड़ी चीज खाए, रक्त या मूत्र पीए, शरसंधान करना, धान्य राशि, फल युक्त पेड़ पर चढ़ना, पर्वत शिखर पर चढ़ना, गाय का दुहना, हीरे-मोती, धान्य, चावल की बालियाँ, मूँग के दाने, शस्त्र देखना, झाग के साथ दूध पीना, अगूँठी पहनना, ऊँट देखना, सर के बाल कटे देखना, बालू देखना।
नोट - स्वप्न में सभी सफेद वस्तु देखना शुभ है केवल पकाए हुए चावल खाना अशुभ है। सफेद घोड़ा, सफेद हाथी, पँछी पर सवार होना द्रव्य हानि का संकेत हैं।
* जमीन जायदाद, बड़ा पद, सुख वैभव, भाग्योदय -
       पूर्ण जलाशय के दर्शन, परमात्मा को फल खाते देखना, चतुर्भुज भगवान, लक्ष्मी, सरस्वती, काली माता या शंकर जी के दर्शन, शहर का घेरा डालना, बैल, मनुष्य, पक्षी, हाथी, पर्वत पर चढ़कर पेयपान करना। रोटी खाना, लाल फल देखना, बादल आकाश में देखना।
* अन्य शुभ स्वप्न-
       स्वप्न में मस्तक काटा जाना या कटने का दृश्य देखना, शत्रु पर विजय प्राप्त करना, चाँदी सोने के बर्तन में खीर खाना, सिर पर फल गिरना, मच्छर-खटमल- मक्खी का काटना, रंगीन वस्त्र पहने स्त्री को आलिंगन देना, रोना, पछतावा करना, रत्न जटित पलँग पर सोना या आसनस्थ होना, वीणावादन या गायन करना, गीले कपड़े पहनना, अग्नि दाह के कारण परेशान, बारिश या अग्निकाण्ड की सूचना मिलना, पशु पक्षियों के कारण निद्रा भंग होना, जलता मकान देखना, पितरों के दर्शन होना, जल क्रीड़ा या स्नान करना, माता-पिता के दर्शन होना, तत्काल नींद आना या खुलना, शिवालय, इन्द्र धनुष, मुकुट, किले का तट, बन्दरगाह, छत्रचामर का दर्शन होना, उल्कापात, नक्षत्र, बिजली, मेघ का स्पर्श, नदी, समुद्र पार करना, फूल खाना या देखना, मिट्टी के बर्तन देखना, कस्तूरी, कपूर, चन्दन देखना, या उनका उपयोग करना, सजी स्त्रियाँ व मित्र बन्धुजन के दर्शन, नीलकण्ठ, सारस दीखना, हाथ में पताका, लता, बेली, हरे वृक्ष की टहनी पकड़ना, धूम्रपान करना, धूम्र रहित, ज्वाला रहित अग्नि का भक्षण करना, पानी सहित मछली हाथ में लेना, शंख के दर्शन, सेना या मृत्यु को निकट आते देखना, कर्णाभूषण, मोती, कौड़ी, बैल प्राप्त होना, बाजूबन्द, हार, मुकुट, पुल बान्धना, मिट्टी खाना, सौभाग्यद्रव्य -हल्दी-कुमकुम देखना या प्राप्त करना, नदी का भँवर, दुर्गा के दर्शन, तलवार, धनुष, छुरा, चक्र, गदा आदि देखना, वेदघोष, हाथी का चीखना, घोड़े का हिनहिनाना, नागकेसर, मालती, चमेली, तिल, लवण, लवंग, केला, अनार, नींबू, नारियल, सुपारी, चम्पा, इलायची, रेत, पान, गन्ना, शीशा, पीतल आदि देखना, फल फूल युक्त आम, नीम, मदार आदि काटना, सफेद सांप का काटना, नीम देना या उस पर चढ़ना, साँड, मोर, तोता, हंस, चील देखना, सिर का छेदन, अपना मरण देखना, प्रकाश देखना, कुत्ता देखना, कमल देखना, लोहा देखना, दातुन करना, धरती पर बिस्तर लगाना, नदी का पानी पीना, पत्थर देखना, जंगल देखना, दिया जलते देखना, पत्र पढ़ना, अनार पाना, आकाश देखना, कुएं में पानी देखना, पूरे नगर में वर्षा देखना, ज्योतिषी, सुहागिन स्त्री, गुरु, पुष्प लिए व्यक्ति, विवाह, स्त्री से प्रेम व्यक्त करना, धन प्राप्ति, समुद्र स्नान, तैरना, बालक, बालिकाएँ, दुष्ट को दण्ड देना, शत्रुदमन, परी, अप्सरा, गन्धर्व, संगति, मंडली, शर्बत पीना, तोरण, तीर्थ यात्रा, गंगा स्नान, बन्धन मुक्ति, शरीर का बढ़ना, देवार्चन व्रत, पहाड़ उड़ते देखना, कुटुम्बी की मृत्यु, विशाल भीड़, किला, विजय, ग्रन्थ रचना आदि।
*अग्नि पुराण के अनुसार कुछ अन्य शुभ स्वप्न -
       अपनी नाभि में तृण या पेड़ उगाना, अपनी भुजा या मस्तक का दर्शन होना, सिर के बाल सफेद होना, चन्द्र, रवि तथा तारे पकड़ना, इन्द्र की ध्वजा को आलिंगन देना, पृथ्वी पर पड़ी जल धारा को अपने शरीर पर लेना, शत्रु की परेशानियाँ देखना, रक्त से नहाना, अपने मुँह से गाय-भैंस, सिंहनी, हथिनी या घोड़ी को दुहना, गाय के सींग से या चन्द्र से बरसी जलधारा से स्वयं को अभिषेक होना, महँगी मोटर या जहाज में बैठना, अपरिचित स्त्री से संभोग करते हुए देखना आदि।
अशुभ स्वप्न एक दृष्टि मेंः
*संकट सूचक स्वप्न -
       जोर से हँसना, खुद का विवाह, नाच गाना देखना, कान में उगे अशोक कदली के फूल देखना, तेल या नमक दिखाई दें, नग्न, नाक कटी हुई काली, शूद्र, विधवा, जटा, ताड़ी के फल देखना, चिढा हुआ ब्राह्मण या चिढी हुई ब्राह्मणी देखना, जंगली फूल, लाल फल, कपास, टांक, सफेद फूल देखना, हिरण का मरा हुआ बच्चा, मनुष्य का मस्तक, रूँडमाला दीखे, अपने टूटे हुए नाखून, बुझी आग, पूर्ण रूप से जली हुई चिता, शमशान, सूखी घास, लोहा, काली स्याही एवं काले घोड़े, टूटे-फूटे बरतन, जख्म, कुष्ठ-रोगी, लाल वस्त्र, जटाधारी, सूअर, भैंसा, काला अंधेरा, मरा हुआ प्राणी, योनी दर्शन, ब्राह्मण-ब्राह्मणी, छोटा बालक, कन्या, क्रोध में विलाप करना, लाल वस्त्र, वाद्य, नाचना, गाना, गायक, मृदंग बजाने वाला दीखें, सींग वाले प्राणी पर बच्चे या बड़े टूट पड़े, कटा हुआ नीचे गिरता हुआ पेड़, छुरी, धदकते अँगारे, पत्थरों की बारिश, रथ, मकान, पर्वत, पेड़, गाय, हाथी, घोड़ा, आकाश से पृथ्वी पर गिरते दीखे, ऊपर से गिर रहे ग्रह, पर्वत, धूमकेतु, टूटा हुआ मनुष्य दिखे, भयभीत गाय अपने बछड़े के साथ भाग जाए (धन नाश), मस्तक पर आच्छादित छत्र कोई छीने तो (पिता, गुरू का नाश), दाँत टूटते देखना, दरवाजा बन्द देखना, दलदल देखना, धुँआ देखना, रस्सी देखना, भूकम्प देखना, कैंची देखना, कोयला देखना, कीचड़ में फँसना, लोमड़ी देखना, मुर्दे को पुकारना, बाजार देखना, बिल्ली देखना, बिल्ली या बन्दर काटे, पत्थर देखना, चादर देखना, रत्न या नगीना देखना, आग जला कर पकड़ना, आँधी और बिजली गिरना, सूखा अन्न खाना, वर्षा अपने घर पर देखना, सूख बाग देखना।
*रोग ग्रस्त सूचक स्वप्न -
         दाँतों का गिरना, हविष्य के पदार्थ दूध, दही, छाछ एवं गुड़ शरीर को लगा दीखे, लाल फूलों की माला पहनी हुई, लाल रंग के वस्त्र पहने हुए स्त्री आलिंगन दे, पादुका, कपाल की हड्डी, लाल फूलों की माला, उड़द, मसूर, मूँग दिखे (फोड़े, जख्म), सेना, गिरगिट, कौआ, सियार, बन्दर, बिगड़ा हुआ भालू, सुअर, भैंसा, ऊँट, गधा हमला करें।
* मृत्यु के संकेतक स्वप्न -
         मुर्दा देखे, जख्मी, बिना सिर का धड़, मुँडन किए प्राणी नाचते देखना, मरा हुआ मनुष्य या काले रंग की मलेच्छ स्त्री आलिंगन दे, शत्रु, कौआ, मुर्गा, भालू आक्रमण करें, अभ्यंग स्नान करके गधा-ऊँट- भैंसा किसी पर सवार होकर दक्षिण में प्रस्थान करें, हँसने वाली, गाने वाली, काले वस्त्र परिधार किए काले रंग की विधवा दिखे, काले वस्त्र पहने काले रंग के फूलों की माला गले में डाले स्त्री आलिंगन दे, गधा या ऊँट के रथ में बैठे नींद खुल जाए, गन्दे कपड़े पहने, पाश एवं अस्त्र धारण किया हुआ यमदूत, काले फूल, काले फूलों की मालाएँ, शस्त्र धारी सेना, विकृतकायाधारी म्लेच्छ स्त्री आदि।
* अन्य अशुभ स्वप्न -
      अत्यन्त वृद्ध काले शरीर वाली नंगी स्त्री का नाचना, खुले केश वाली विधवा, सिर पर ताड़ के या कोई भी काले रंग के फलों का गिरना, मैला कुचैला, विकृत आकार, रुखे केश वाले मलेच्छ या गलित कुष्ठ से युक्त नंगा शूद्र देखना, सधवा, पुत्रवती, सती स्त्री या शिखा खोले ब्राह्मण को, रोष कुपित गुरु, सन्यासी या वैष्णव को देखना, घड़े का फोडा़ जाना, अँगार, भस्म या रक्त की वर्षा, सूर्य या चन्द्र को निस्तेज या ग्रहण लगा हुआ देखना, हाथ से दर्पण, दण्डादि गिरकर टूटना, गले का हार, माला आदि टूटना, काली प्रतिमा देखना, भस्मपुँज, हड्डियों का ढेर, ताड़ का फल, केश, नाखून, कौडि़याँ, कोयला देखना मरघट या चिता पर रखा मुर्दा, कुम्हार का चाक, तेली का कोल्हू, आधे जले या सूखे काठ, कुश, तृण, चलता हुआ घोड़ा, मुर्दे का चिल्लाता हुआ मस्तक, आग से जला हुआ स्थान देखना, भस्मयुक्त सूखा तालाब, जली मछली, लोहा, जला हुआ वन देखना, तिरस्कृत या अपमानित होना, फाँसी लगना, घबराना, पसीने-पसीने होना, घी लेना, मीठी चीज खाना, दुर्घटना होना, खाली बर्तन लेकर भटकना, लाल या काले वस्त्र पहनना, परदेशी की मृत्यु की सूचना, सांपों से क्रीड़ा, सांप का पेट में घुसना, हवा में उड़ना, दक्षिण की यात्रा, चोरी करना, चोरी होना आदि।
अशुभ फल सूचक स्वप्नों की शान्ति के उपाय -
*अशुभ स्वप्न देखने पर स्वप्न को तुरंत ही यह स्वप्न किसी को सुना दें और पुनः सो जाएँ। स्वप्न के अशुभ फल प्राप्त नहीं होंगे।
*1000 गायत्री मंत्रों से हवन करें।
* ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’, मंत्र का 10,000 जप करें।
*‘ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं दुर्गतिनाशिन्यै महामायायै स्वाहा’ का 10 बार जप करें।     
* महामृत्युञ्जय मंत्र का जप करें।
* ऋग्वेदोक्त ‘दुःस्वप्ननाशन सूक्त’ का पाठ 11 बार करें।
स्वप्न एक गूढ विद्या - स्वप्न की महत्ता तथा आध्यात्मिकता को स्वीकार करते हुए भारतीय तंत्रशास्त्र में भी इस विषय पर विशेष चर्चा की गई है। भारतीय ऋषियों ने कई मंत्रों का उल्लेख किया है, जिसके द्वारा मंत्र की अधिष्ठात्री शक्ति की कृपा से व्यक्ति अपना शुभाशुभ फल जान सकता है। इन साधनाओं में स्वप्नेश्वरी देवी, स्वप्नदेवी, स्वप्नचक्रेश्वरी तथा स्वप्न सिद्धि प्रमुख हैं।
* स्वप्न सिद्धि मंत्र - ‘ॐ ह्रीं नमो वाराहि अघोरे स्वप्नं दर्शय ठःठः स्वाहा’
  इस मंत्र को सोते समय ग्यारह सौ मंत्र का जप करने से ग्यारह दिन के भीतर ही प्रश्न का उत्तर स्वप्न में निश्चित रूप से मिल जाता है।
*स्वप्नदेवी मंत्र - ‘ॐ ह्रीं मानसे स्वप्नेश्वरि विचाय विद्ये वद वद स्वाहा’
एक लाख जप करने से प्रश्न का उत्तर स्वप्न में मिल जाता है।
*दुर्गासप्तशती प्रयोग -
" दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।
मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।।"
      इस मंत्र का सोते समय 108 बार नित्य पाठ करने से शीघ्र ही प्रश्न का उत्तर स्वप्न के माध्यम से प्राप्त हो जाता है।

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